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प्रक्ष नि
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[सिद्धहेम] श्लिपेः सामग्गावयास-परिअन्ताः ॥ १९० ॥ श्लिष्यतेरेते त्रय, आदेशा वा भवन्ति ॥ सामग्गइ। अवयासइ। .
परिअन्तइ । सिलेसइ मध्य ति____क्षेश्वोप्पडः ॥ १९१॥
म्रक्षेश्चोप्पड इत्यादेशो वा भवति ॥ चोप्पडइ । मक्खइ ॥ ___ कावेराहाहिलङ्घाहिलङ्घ,बच्च:वम्फ-मह-सिह विलुम्पाः॥१९२॥ _काङ्क्षतेरेतेष्टादेशा वा भवन्ति ॥ आहेइ । अहिलङ्घइ । अहिलङ्खइ । बच्चइ । वम्फइ । महइ । सिहइ । विलुम्पइ । कइ ।
प्रतीक्षेः सामय-विहीर-विरमालाः ॥ १९३ ॥ , प्रतीक्षेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति ॥ सामयइ । विहीरइ । विरमा- लइ । पडिक्खइ॥ ___तक्षेस्तच्छ-चच्छ-रम्प-रम्फाः ॥ १९४ ॥ ___ तक्षेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति ॥ तच्छइ। चच्छइ । रम्पइ । बारम्फइ । तक्खइ । __ विकसे कोआस-वोसट्टौ ॥ १९५॥
विकसति विकसेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ कोआसइ । वोसट्टइ । विअसइ ॥ ___ हसेर्गुञ्जः ॥ १९६ ॥ हमति हसेर्गुञ्ज इत्यादेशो वा भवति ॥ गुञ्जइ । हसइ ॥
संसेहँस-डिम्भौ ॥ १९७॥ स्रंसेरेतावादेशौ वा भवतः ॥ ल्हसइ । परिल्हसई सलिल-वसणं । डिम्भइ । संसइ॥
५.९1382.
सलिलव्यसन
Bअना. २ A गिपरे'. ३ B°अत्तइ. ४ A मृक्षेश्यों'.५ A "लुम्फा . ६ A आहिइ. B आहाइ. ७ A°लुफड. ८ A फा॥ ९ B°इ । सलिलवसण डिम्भइ.