________________
( ३३ )
कय सरोवर पाली, बघ तु मई जि टाळी, किसिंउ दव पनाळी ॥ १८ जीवडा कोडि बाली, कप मनि दीधी गाळी, अाल दीघउं शुद्ध वाळी कह लहीय विचालि, बाळ लीघउं अदाली ॥ १६ सखि ! न गमह गायु, चिंत सोकिइ कमायुं रुचइ नहि निवायु, ताप दिइ फूल लायु असुख सिइरि घायु, हीयडल इ डीव जायुं किसिउ मई कमायु, देवि जं इम नीपायु ॥ २०
हसिउ राज्ञी तणउं त्वरूप, साभलिङ सिद्धार्थ राइ विरूप ।। २० दासी ना वचन तु तत्काल ऊपनु मस्तकि चाटक विसनिउ वित्रीस बद्ध नाटक ॥ २१ जे हंता बड्या, ते थया फडूया ॥ २२ जे गीत गान ( पत्र १ ख ) करता गंधर्व तेह तणा गरुवा गर्व ॥ २३ राज भवनि जीणइ रजीइ चीत ते एकू न सामलीइ गीत || २४ जीणइ ऊपनइ मन रहइ चित्र ते न वाजइ वाजिन || २५ जेहता पंडित, ते यिया दुख मंडित ॥ २६ जे राय रहइ अवस्य कृत्य, ते न दीसइ नर्तकी नृत्य ॥ २७ जेहे विद्वासे धूणीड मस्तक, ते न वाचई पुस्तक ।। २८ जे साभळता थईइ हराण, ते न वाचीइ पुराण ।। २६ जे जाणह काव्य नु अवसर तेहे कवीश्वरे मूकि उ महाकाव्य नु प्रसार ॥ ३० जे साभळना फीटइ व्यथा, ते एकू न सामलइ कथा ।। ३१ श्रीहणे बोले मोतीरिया दीजद सुवर्ण मह त्राट ते कलिरव न करइ भाट । ३२ जे हूँता चाचरीया, ते यया लासरीया ॥ ३३ जे लोक रई परावइ जुहार, ते हूया निसचला प्रतिहार ॥ ३४