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परिशिष्ट नं०४
त्रिशला शोकाधिकार यदा कालि जगन्नाथु माय-तणी अनुकपाकरी थिउ सलीन तनु । यत्कारि दुखि पूरीवा लागुं राग्नी त्रिशला तणु मनु ।।१ अहो! पा किसिउ अकालि उत्पात, हुसिइ किसिंउ वज्रपात ॥ २ अहो सखी! माहरइ गर्मि पामिउ विलयु, हुसिह किसिंड हिवडा जि विश्व प्रलय ।। ३ हिव एउ माहरइ मस्तकि जे अछई मउड, एउ प्रत्यक्ष झउड || ४ एउ हार, साक्षात महार ।। ५ बाहु वल्लरी तणां जे अछह वलय ते दुःख तणा दीसह निलय ।। ६ एउ अपूर्व पट्ट-दकूलु, ते देखतां संताप तण मूलु || ७ एउ अछह सवांगीण शृंगार ते देखना संपूर्ण अंगार ॥ ८ दैव ! मई किसिउ कीघउ, पाछिलइ भवि कुणई तणा छोरू तु विछोह कह नीपजाविउ कुणइ संत रहई वंच द्रोह जेह कारण विफल हुइ छइहरु मोह ॥६ मइ किसिडं कीघउं पापु जेह कारण दैविइ पाडिउ एवउ संतापु ॥ १० मई नागिंउं हतूं हसिइ सुलख्यण कमार थासिइ विश्व रई आधार ।। ११ नाणिउं हत् पुत्र माडिसिइ आडउ, मेलसिइ पाडु (पत्र १ क)॥ १२ जाणिउं हतूं श्राविसिइ जिवारई माहरइ घरि तिवारइं हूँ थासि पुत्रवंती नइ धुरि ।। १३ माहरउ जायु थासिइ मोटउ राउ, देसि वयरी तणि मस्तकि पाउ ।। १४ तउ पापी देवि भागी सवे श्रास, पडिउ सम-काल दुःख-तणउ पास || १५ भागी सघलीइ रुली, संताप श्रेणी ऊछली श्रास वेलि जई बली माहरइ मनि सुख तणी वात जि टली ॥ १६
आसां तश्यर मुहुरीउ नाम फलेवा लग्ग विहि कुंजरि उम्मूलीय एय कुसंघिई भग्ग ॥ १७