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(२७५ ) जिम कर्ण' सोहै स्वर्णालंकारी, जिम सरीर सोहे शील शृगारी । निम सरोवर सोहै कमलि, जिम पुष्प सोहै परिमलि । जिम नेत्र सोहै युगलि, जिम रात्रि सोहै चंद्रमडलि । जिम विवाह सोहै कूरे, जिम उत्सव सोहै तूरे । नदी सोभै पूरि, तिम सम्यक्त्व सोहै भावना भूरि । इति भावना वर्णनम् ।
(स. ५) (११३) कौन किससे शोभित होता है ? (४) घर ओपइ घरणि, गगन अोपइ तरणि ।। वृक्ष अोपइ पल्लवि, ताम्बूल ओपइ चूर्णलवि । वस्त्र अोपइ रंगि, मउड अोपइ मस्तक सगि । माणुस ओपइ शृगारि, व्यजन अोपइ वघारि । राजा श्रोपइ भंडारि, हाथिउ अोपइ मदवारि । ३१ (स १)
(११४) कौन शोभा नहीं पाते (१) शस्त्रहीनो यथा सूरो न शोभते । मत्र हीनो मंत्री । धुरा हीना गंत्री । प्राकार हीन नगरं । स्वामी हीन बलं । दत हीनो गज । कलाहीन पुमान् । तपो हीनः मुनिः । तेजो हीनो मणिः। वाण हीन धनुः । धारा हीन कृपाण। वेद हीनो विप्रः । कपिशीर्ष हीनो वप्रः । गंध हीनं कुसुमं । नयन हीन वदन । लवण हीनी रसवती । चैतन्य हीनं वपुः । (स. २)
(११५) कौन शोभा नहीं पाते (२) बुद्धि हीन मुख्य नायकु, अति निष्ठुर वणिकु । स्वासणउ चोरु, कलापु हीन मोरु । आलसउ कुमारउ, अध अनइ भरालउ । दुविनीत शिष्पकुलु, बज रहितु देवकुलु । वृतु रहितु भोजनु, स्नेह हीन स्वजन । तेज रहित आरीसउ, गृहस्थ बोडउ । १. कान सोम।