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( २७४) शशाकेन निशा, निशाया शशाकः । नयेन राजाः, राजा नयः । व्यसनेन मूर्खता, मूर्खतया व्यसनं । मदेन नारी, नार्या मदः । नदी जलेन, नद्या जलं । परिमलेन पुष्पं, पुष्पेन परिमलः । नादेन वीणा, वीणया नादः । दंतर्मुखं, मुखेन दताः । विद्युता मेघः, मेघेन विद्युत । तोरणेन मडपः, मंडपेन तोरणं । हारेण हृदय, हृदयेन हारः॥
(म. २)
निर्दन्त करटी हयो गत जवश्चद्र विना शर्वरी निगंध कुसुम मरोवर गत छाया विहीनतरु रूप निर्लवण सुतो गत गणश्चारित्रहीनो यतिः निर्देव भुवन न राजति तथा धर्म विना पौरय ||१|| ( पाठ पु० प्रति में अधिक मिलता है । )
(पु०) __(१११) कौन किससे शोभा पाता है ? (२) कुलबहु ते सीले शोभे, रजनी चद्रमाइ शोभे ।
आकाश सूर्यई करी शोमे, वन चदने शोभे ॥ कुल सुपुत्रे शोभे, कटक राजाई शोभे ॥ प्रधान राजाइ शोभे, राजा प्रधाने शोभे ।। ध्वजा देवेले शोमे, देवल ध्वजाई सोभे ॥ स्त्री भरिइ शोमे, भतर बीइं करी शोभे ॥ 'तिम परस्पर शोभा जाणवी ॥
(स. ३)
वेल फूले सोम, मुख तंबोले सोभै । मोह कम बोले सोभे, सीह वन सोम । मुख नासिकाई सोभै, तिम मनुष्य धर्मइ शोभे ॥ कमल जले शोमे, जल कमले शोभे, सुवर्ण रन्ने शोमे, रत्न सुवर्ण शोमै ।
(११२) किससे कौन शोभा पाता है ? (३) जिम प्राताट सोभे वजधारी, जिम हृदय सोभे हारी। निम गृह सोभे उत्तम नारी, जिम मत्तक लोहे केस प्रागभारी'। । प्राप्तारि