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हंस तउ ऊडमा मएड, इसउ असार, सरीर संयोग ईय ऊपरि ईमहि लोक व्यामोह करइ । पु० अ०
(७०) अर्थ सविहु परि समर्थ, अर्थ लगी महत्त्व । अर्थ नउ प्रभुत्त्व । जेह हुई द्रव्य, तउ सविहु हुइ संसेध्य । द्रव्य लगी अणहूता गुण, द्रव्य तउ मगलाइ जाइ अवगुण । द्रव्य लगी पूजई प्रास, सहु कोई द्रव्य नु दासु । द्रव्याचना विता करइं लोकु, द्रव्याद्य तउ वसह वेगलउ शोकु । द्रव्य तर उपरोधीइं वाका, द्रव्य नउ धणी बोलइ फांकां । सहू को सासहइ, अदत्तु हूतउ प्रतिष्ठा लहइ। इस्युद्रव्य ॥ ३२ ॥ जै०
(७१ ) द्रव्य की अशाश्वता द्रव्य उपार्जिउ कुणहि नणउ शाश्वत न हुई । कुणहि नउ द्रव्य उपार्जिउ चोर हरइ १ । कुणहि नउ द्रव्य राउलि उपगरइ२ । कुण० द्रव्य अग्नि उपद्रवइ । कुरप० समुद्रमाहि द्रवइ । कुणहिनउ नट विट फेडइ । कुण हि० खूट खरड झगडइ त्रोडइ । कुरा० द्रव्यि वाट पडइ कुण० भुहिं सहइ । कुपहइनउं रोलि नाइ, कुण ० वाणउत्र खाइ । कुणहइनउ साझा त्रूटइ, कुण० द्रव्य गुणि फूटइ । इसी परिद्रव्य ऊपाजिउशाश्वततउ कुए हिनउ न हुई ॥ २२ ॥ जो०
(७२) धनोपार्जन रक्षण बड़ कष्टि धनुऊगार्जियई कवणु हल खेड़ि, सवर तएउ ठाउ फेडी धनु ऊपाह
दिद गरीर कस्तूरी कर प्रनृतीन्यपि दप यत्येच पायोद पयान्यूपट भूरि च ॥ , उपगरः २ उपइरिहि ३ मामह ४. गुणे, गूणि