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कावणु हाट तणउ पासउ मांडी प्रापसापउ धर्महूतउ खाडिउ धन उपार्जह कवणु सीय तापु वाउ सहिउ देसातर रहिउ धनु ऊपाइ क्वणु समुद्र माहि थाइ ऊपरि तिरीइउ धनु उपार्जह कवणु पर घरि काम करिउ छाग पूजउ ऊधरी धनु ऊपाइ क्वा बाटु पाउ सचिउ अापणउ पेटुवंचिउ धनु ऊपाइ आपुणि नइ सुपात्रि न वेयह तउ अप्रमाणु ना धन शास्वतु, कवणहइ उपानिय उतं चोर हरइ कवसहइ राणे उपगरइ कवणहइ अग्नि उपद्रव करइ कवणहइ विटु० नाटु विद्रवड कवणहइ झगड़इ जाइ कवणहइ वाणत्रु खाइ
(७३) अथ लक्ष्मी चचलत्वं निसउ पिप्पलु तणउ पत्रु, जिसउ हाथीया" तणउ कर्ण। निसी बिहुं प्रहर तणी छाया, निसी रावण तणी माया। जिसउ संध्या तणउ रागु, जिसउ दुर्जन तणु विरागु। निसउ तरुणी तणउ कयक्ष विक्षेपु, जिसउ संग्रामि कातर तणउ आक्षेप जिसउ वीन तणउ मालकार', निसुं इद्रियाली तणउ इंद्रियालु, तिसउ विभवु आलमालु ।
(७४) राजा के चंचलत्व की उपमा (२) "प्रय रानाने धर्म चचल' सारिषा -जेहवो पीपलनोंपान, निम कुंजरनो कान । जिम असतीनु मान, निम अदातानुं दान । जेहवो अकंठोयानो कान ।
१. सयर २ शीतवात ३ भमी * भधिकपाठ-कुणहू परायइ धरि दास कर्म करी छाण पूजेउ महतरि धरी द्रव्य ऊ०
कुणहू भूख त्रस सही मार्ग माहि रही द्रव्य ऊ. कु० कृड कपट करी पापि आपणउ पिंड भरी द्रव्य ऊ० . कुणहू परायउ रण भाजी आपणउं पुण्य गाजी द्रव्य ऊ.
कुणहू भीसी भमाढ़ी आपणउ सपरू विनड़ी द्रव्य ऊ8 ४ पात, पर्ण ५. हस्ती ६. कान कणं ७. रण ८. विक्षेप ६. अलकलउ ।