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एक गामे भलो आहार, बीजे गामे पाणीना विकार । एक गामे भला स्वरूप, वीजे गामे दीसें माहाकुरूप । एक गामे विविधना सुख, बीजे गामे अनतना दुख । एक गामे उत्तमनी शोभा, वीजे गामे नीचनी कुशोभा । एक गामे भलो बाजार, वीजे गामे दुःखना भंडार । एक गामि टीसे झलामल वीजे गामे महा हलाहल । एक गामे मोटा महल, वीजे गामे झुपडा माहि (पणि ) खलभल ! इति' संसार असार, महादुखदातार इत्यादिक जाणवा । पू०
(६४) शरीर
शरीरु बाहिरि कुंकुम कस्तूरिका वासियइ, अभ्यतरि अशुचि रसि विणासीचह । सरीरु बाहिरि' पहिरइ सुवरण घडिउ, अभ्यतंरि अस्थि खडे नडिउ । सरोरु बाहिरु श्रीखंडि गोलामि अभ्यगियइ, अभ्यतरि रुधिर रसि रगियउ । सरीरु वाहिरि पाटु वस्त्र पहिराविड,
आभ्यंतरु मामि पिण्डि भावियइ । मुख लीजइं सर्व सारु आहारु, महानीसह खाटउ उद्गारु । नासिका सुगंध गध प्रतिसरइ, महापुण सूगावणउ श्लेष्म नीसरइ। गानि साभलियइ मधुर गीत पटलु, महा नीसरइ तउ पकु समानु मलु । लोचनि लगाड़िय स्निध क्जलु, महा नीसरइ पीहे सहितु जलु । कुडि खड़हदेवा मणी', आयुष्क तुटण मणी५ ।
पाठान्तर -१. इम २. वाह्य ३ सोनउ ४ हामणी ५ त्रुटण