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चंद्रमा क्षयउ, समुद्र वडवानलि दहयउ रोहिणी गिरिता कंद खगिया
कसं कीनइ कहा जाइयइ
प्राकास निरालवु, पाताल प्रवेश नही
मृत्युलोक असोच, वन सभय
समुद्र खारउ, इसउ नाणिउ धर्म कीनइ ( पु श्र० )
(६७) संसार के दो छोर
एगमा धवल मगल, वीजागमा कलह कदल | एक गमा शोक, वीजी गमा विव्वोक ।
एक गमा श्रानद, बीजा गमा आक्रट |
२
एक गमा कुतहलना' श्रारंभ, वीजा गमा भूझना सरंभ | एक गमा सस्नेह कोमलालाप वीजा गमा वियोग विप्रलाप | एक गमा अद्भुत शृंगार, वी० सर्वस्वायहार । एक गमा माटल ना धोंकार, वी० शोकना हाहाकार । एक शकना ओंकार, बीना० रोग तथा विकार । एक० विद्वास नी गोष्ठी, वी० मद्ययना कल कल । एक० वीणा तथा निनाट, बी० दुःख तनु विषाद् । एक० अद्वितीय रूप, बी० विभत्स कदर्य विरूप । एवं विघ संसार, दुःख तर उ भंडार । सर्वथापि सार नाणिवउ || १४ | जो०
(६८) ससार स्वरूप (२)
एक गामि धवलमंगल, बीजे गामे कलह कदल । एक गामे श्रानन्द, बीजे गामे श्राक्रन्द | एक गामे विचित्र क्रीडारंभ, बीजेगामे समरसरंभ । एक गामे श्रालाप संलाप, वीजे गामे खावाना कलाप । एक गामे मोटाहार, वीजे गामे रहिवाना उत्पाट । एक गामे नवनवा शृंगार, बीजे गामे शोकना भडार । एक गामे मादलना घोंकार, वीजे गामे रोवाना हाहाकार । एक गामे शखना ऊकार, वीजे गांमे रोवाना रोंकार ।
१. विचित्र क्रियारम । २ समर । ३. ससना । ४. कुरूप ।