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( २४६ ) जब तब तां खोनानह खान, जा जीमहनासक नान ता० भट्टारक भगवान । जां जी० तां गीत नई गान, जा जी० ता तान नइ मान । जां जी० तां विवाहनइ नान, जा जी० तो फोफल नइ पान । जा जी० ता । धर्म नइ ध्यान, ना जी० ता तपनइं उपधान । जां जी० ता, दरनइ मान । जा नी० ता लगिसरवाकान, ना जी० ता लगि मुहडइ वांन । जां पेट न पडइ रोटिया, ता सवे गल्ला खोटिया । ततः ।
(६५) काम कोई करे फल अन्य को मिले दंताश्चति उपकारो ग्सनायाः। क्रमेलको भारं बहति उपकारः पुण्यवतां । खरश्चदन बहति भोगश्च भोगिनामेव । लिखनं लेखकस्य फलमागम वेटिना । मृदगो धन घातान् सहते फल तु श्रोतृणां । युद्धयते सेवकाः पर जय. स्वामिन एव । वृक्षा फलति उपकारस्तु पाथाना । वर्षति वारिटाः फल तु कर्षकाणा। कदर्यो पात्र वित्ताना भोगो भाग्यवताभवेत । दंता दलंति कष्ठेन' निहवा गितती लीलाया ।। ६६ जौ०
(६६) संसार इस ससारि कवण एक श्रापदि नही श्रावी बलि जेवडउ दानवु बाघउ नलि जेवड़ड राना विहलिउ पाडव जेवडा वनवासु हूयड वलदेव जेवड़उ भाई विछोहु रावण जेवडउ मृत्यु माघ जेवडउ पडित भूख पाय सूरणा तुमत एक कछोटड़ी अनइ ससारि कोई सुखियट नस्थि शुक्र कापउ, सनीछरउ पागलउ १. कष्टेन