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सिंह गजयोः, गो व्याघ्रयोः काक घूकयोः पंडित सुर्खयोः । सुजन दुर्जनयोः, विप्र वाचंयमयोः । सर्प नकुलयोः, महिय तुरगयोः ।। ३३ । जो०+
(६२ ) सहज वैर (२) जलने अगनि प्रीति, देव दैत्य ने प्रीति । मुषक मानार ने प्रीति, सिंह गजने प्रीति, गो व्याघ्रने प्रीति पंडित मूर्खनें प्रीति सजन दुर्ननने प्रीति || सर्प नोलने प्रीति, सौक सौकनें प्रीति । महिप तुरंगने प्रीति ॥ इत्यादिक अमेल नाणवो । पू०
(६३) । गुण के साथ दोष भी रहता है ।
जिहा गुरुवा' तिहा गाजणउ । जिहा कुलीन तिहां खापण्डं। जिहां भाणउ तिहा भउ। जिहा झूझ तिहा खउ। निहा चोरो तिहा दोरी। निहा चडणं, तिहा पडण । जिहा जन्म तिहां मरणु जिहां रूलण तिहा भरण । जिहां रंग तिहां विरग। जिहा संयोग, तिहा वियोग । जिहा लाइउ तिहा छेहउ । जिहां रूसणउ, तिहा तूसणउं ॥ २८ । जो० +
+ पतिव्रता म्वैरण्यो.' पाठ पु० प्रति में अधिक है १. गुन्तण। • भाणौति । 3. भय ।
+ जिस्, वास तिन्यु अभ्यास । निसी दीख तिसी बीस । नित्यु श्राहार तिन्यू ढकार । जित्यु वावीइ तिस्सु लूणी । जिस्यु पुण्य पाप कीजइ तित्यू भोगवीड । यह पाठ पु० प्रति में अधिक है।