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( २४१ ) तेम० कामधेनु अलीढ़ी मेल्हह, चिंतामणि रत्न श्रावंवउपाय पेखइ । क्ल्पद्रुम श्रापमा घर तउ उन्मूलइ, प्रवहण मेल्ही श्रापस पर समुद्र माहि बोळई। ते सतु० सोना तणइ कारणि पित्तल तोलइ, अमृत तणी श्रास लगइ विस घोलइ । ७ । जो.
(४३) थोड़े के लिए अधिक विनाश (३) ठीकिरि कारणु कोइ काम कुभु फोड़इ, निष्कारण कोइ आत्म स्नेह तोडा कामधेनु कोइ ढोली मेल्हइ, चिन्तामणि कोइ हाथो पेल्हइ कल्पद्रुम कोइ उन्मूलि नाखइ लक्ष्मी श्रावती न कोह राखह जिन धर्म लही कोइ प्रमाद सेवइ । पु. अ.
(४४) अति (१) मिलमलन ते नीठवानइ, अतिघणु मार ते धीठवानह' ।। अतिघणुं नेह ते त्रुटिवानइ, अतिछणुं विलोइ० ते फूटिवानइ ।। अति घणु खाइबु टिवानइ, अतिघणुं ढील ते छुटिवानइ ।। (खू) अतिघणु तानिबुं बेंटिवानइ, खड भडइ चोर ते फाटिवानइ ।। अतिघणुं गरथ ते खाटिवानइ, अति दुरी बातते टाटिवानइ ।।
इति वचनानि ।। कु.
(४५) अति (२) अति ताणिउ त्रुटइ, अति भरिउ फूटइ। - अति लइउ वाडि फडइ, अति माथि काल कूट हुइ । अति चाविउ कूचा थाई ।
(४६) करने में असमर्थ छोतरि छासि" केतलउं पाणिउ खम पातलि छाया केतलउ श्रातप गमइ । कातरु केतलु रणागणि जूझह । निरुक्खरु केतलु कहिउ बूझह ।
२-अलाढी • निफ्कारणि, ३ लाखद ४ राचा ५. छिद्रीच्छासी, छीदरी ६ सहा ७ नीगमद,। -