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( २४०) सूर्य बिना तेज नहीं, परीणि बिना हेज नहीं ।। भण्या बिना मर्म नहीं, कुल बिना सर्म२ नहीं।। तिम दया विना धर्म नहीं।
(४०) इनके विना ये नहीं (२) पुण्य बिना सुख नहि, अग्नि बिना धूमो नही । वीज बिना अंकूरोद्गमो न, सूर्य विना दिवसो न । सुपुत्र बिना कुलं न, गुरुपदेश बिना विद्या न । भाव सिद्धि विना धर्मो न, धन बिना प्रभुत्वं न । दान विना कीर्ति न, भोजन बिना तृप्ति न । वीतरागं बिना मुक्ति न, साहस बिना सिद्धि न । जल विना पावित्र्यं न, उद्यम बिना धनं न । कुलागना बिना गृहं न, वृष्टिविना सुभिदं नही । घम्र्मेण विणा जइ चिंतियाइ, ।। (६५ जो०)
(४१) थोड़े के लिए अधिक विनाश मत कर काच खड कारणि म नीगमि चिंतामणि वाटी कारणि अरहटु म वीकणि अंकार कारिणि कल्पवृक्ष म धारि कागिणी कारणि कोटि म हारि कोलिका कारणि देवकुल म चालि विषय सुख कारिणि मानुषउ* जन्म म हारि+ । पु. अ.
(४२) अल्प के लिए बहुत का नाश (२) अल्प के लिये बहुत का नाश जुको जिन धर्म लही प्रमाद करइ । , ते जाणे ठीकरी कारणि अमृत कु म फोडइ, निष्कारण श्राजन्म तणउ स्नेह त्रोडइ । १ सर्ग २ गर्व । ३ अ कार वदि ४ खीली ५ मानखड +"कोचिकूवदि ऋद्धि च इउ दासत्तण अहिलसइ मुनु चिंतारयण, कायमणि कोवगि ण्हेर ॥ उक्त पाठ एक अन्य प्रति में अधिक मिलता है ।