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(२३६ ) (३८) विनाश-४
जिमि विलबह विणमइ काज, कुप्रधानइ विणसइ राज । श्रणवोल्या विणसहव्याज, कसत्री विणनइ प्याज | पडषि विणसइ दान कट विण विणसर गान । लूइ विणमड पान, लूण विण विणसइ वान । कुमरणइ विणसइ अवसानु, व्यावह विणसइ मुखान । पितुनड विणसइ राज सनमान, कूसगत विणसइ सतान दवानल विणसई उद्यान, अात्तई विणसइ ध्यान । कुपडिनइ विणसइ छात्र, क्षयनि विणसइ गात्र । वृक्षइ विणसह प्रसाद, सिंदूरइ विणसइ साट । वेगह विणसइ नेत्र, तीडड विणसइ सेत्र । विषप्रयोगि विण्मइ रसवती, पाक चमडीये विणसइ कणक वाक । कुन्यमनड विणमइ सत्कर्म, तिम जीवहिंसाअड विणसइ सद्धर्म ।
इति विनास वाक्यानि । कु०
(३९) इनके विना ये नहीं (१)
गुरु बिना वाट नहीं, द्रव्य विना हाट नही ।। सूतार विना खाट नहीं, सण विना बाट नहीं ।। काष्ठ विना पाट नही, धात विना काट नहीं ।। कुमार बिना माट नहीं, सोनार विना घाट नही ।। माया बिना ठाट नहीं, बाजा बिना नाट नही ।। जव बिना वाट नहीं, सोग विना उचाट नहीं । स्त्री बिना पुत्र नही, रू विना सूत्र नहीं । ग्राम बिना सीम नहीं, मन विना नीम नही ।। धन विना नर नही, मा विना पीहर नहीं । दान बिना जस नहीं इक्षु बिना रस नहीं ।
आकश बिना मेह नहीं, बांधव विना स्नेह नहीं ।। दरसन बिनां सिद्धि नहीं, पुण्य बिना रिद्धि नहीं । झाड विना साखा नही, रोग बिना राखा नहीं । सील बिना धर्म नहीं, पाप विना कर्म नहीं ।