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(६७) देववर्णक (१) "अति सुकमाल, विसाल भाल । करता झाकझमाल, अतिरसाल || 'दिव्य देह, रूप रेह ।। मयण गेह, अति सस्नेह ।। निरामय शरीर, धीर वीर ॥ महामानी, टीसता जेहवा जानी ।। "विराजमान कुडल, दर्प निसा गल्लस्थल ॥ महा भोगी, साक्षात देखइ जोगी ।। अमृताहारी, स्वेच्छाचारी ।। सदय सनूरा, क्रुद्धई करी पूरा ।। 'मलमूत्र रहित अवितशक्ति सहित । विमाने बइठा वहइ, भूमियी च्यार अगुला ऊचा रहह ।। मुनि 'कुशल धीर कहइ', टेव, ... ।।
इति देव वर्णक || कु.
(८) मोक्ष इन बातों में नहीं मोटी छोटी कछोटी मोक्ष नहीं, कापाय धोती मोक्ष नहीं । विकट जटा मुकुटि मोक्ष नही, निष्कारणि शिक्षा मोक्ष नहीं। कठि जनोई मोक्षि नहीं, हाथि अनति मोक्ष नहीं । अखंड त्रिदडि मोक्ष नहीं, कन्हइ कमडलि मोक्ष नहीं । मस्तकि मुडिड मोक्ष नहीं, वन वासि मोक्ष नहीं । किन्तु रागद्वेष परिहारि शुद्धि मनि मोक्ष हुई।
रागी बध्नाति कर्माणि वीतरागो विमुच्यते । जना जिनोपदेशोय सक्षेपास्ध मोक्षयो ।॥८७। जो.
(९६) मोक्ष इन बातों में नहीं नच्छोटी कछो मोक्ष, न विक्रटि जटा मोक्ष । न कण्ठ कंटर स्थित यज्ञोपवी मोक्ष न अखण्डि त्रिदण्डी मोक्ष । न विशालि कपालि मोक्ष, न स्वदर्शन मुण्डनि सिरे खुडनि मोक्ष । न नियंत्रित सर्व करणि विकृष्ट तपश्चरणि मोक्ष । किन्तु राग द्वेष परिहारि सुद्धा निर्मल मनि पावीइ ।
१. शिखा