________________
( २१६ )
नामइ दुगु दुग देव, ४ लोकपाल । पद्मा, शिवा, अजु श्यामा सुलसा, अचला कालिंदी भाणू ए अठ अग्र महिषी, सोल सोल सहस्र देवी परिवृत्त, १२ सहस्र अभ्यतर सभा तणा देव, १४ सहस्र मध्यम सभा तणा देव, १६ सहस्र बाह्य, सभा तणा देव, ७ कटक नाट्य, गधर्व हय, गज, वृषभ, रथ, पदाति रूप ७ कटकतणा स्वामी। नीलंजणारि जसहरि एरावण मातलि दामिही हरिणेगमेषी ७ सर्वा गि सन्नाह पहिरि, दृढकशा बधि बाधी धनुषि गुण चडावी रहया, ग्रीवा भरण विभूष्य मस्तकि। नेत्रादि वस्त्र मय अथवा सुवर्णमय टोप धरता सज्जी. कृत क्षेप्यास्त्र, गृहित अक्षेप्यास्त्र मध्यि बिहु पासि एव बिहु स्थानकि नम्या । त्रिहु स्थानकि साध्या इस्या वज्र मय कोटि धनुष मुष्टि स्थानकि सारहिया, नील वर्ण, पूष पीत वर्ण, रक्त वर्ण, पुख इस्या बाण हाथि धरता, केतलाइ अनारोपित चाप हाथि लेइ रहिया, केइ खेडा हाथि, केइ खाडा हाथि, केइ दड हाथि, केई पाश हाथि, केतलाइ नील वर्ण, पीत वर्ण, केतलाइ रक्त वर्ण, केतलाइ त्रिवर्ण चाप प्रमुख शस्त्र धरइ छइ ।
सर्वे स्वामी शरीर रक्षा सावधान, अनेथि मन अणकरता, मडली नो स्थिति आलोपतां' परस्पइ आतरु पडतु टालता, परस्पर संबद्ध, सदा विनयवंत्त, अत्यन्त भक्त, इस्या त्रिन्नि लाख छत्तीस सहस्र अगरक्षक देव सम श्रेणी निरतरि इन्द्र पाखतो रहिया छई। इम सौधर्मेन्द्र धर्म तण्ड प्रसादि महासुख अनुभवइ, इम अनेराई देवेन्द्र ना सुख जाणिवा छ०॥ (१६४ जो. )
(६६) देवलोक सुखे
देवलोकणी, केवडी ऋद्धि, केवडउ सुक्ख, जहि मनोवाछित विमान सपनइ, मनोवाछित आहार, मनोवाछित सिंगार, मनोवाछित अगभोग, मनोवाछित, आभरण, मनोवाछित रत्न, मनोवाछित नायका, मनोवाछित प्रेक्षणक मनोवाछित नाटक, अने अनेक परि क्रीडावन, सरोवर, पुष्करिणी, वैक्रिय लब्धि संपन्न हूता विचित्र क्रीडा करइ, शरीरि प्रस्वेद नही, फूला कुर्माइ नही, वस्तु मइलियह नही, फूटरा पहिरणा चागण चोटा थका देव सुक्ख अनुभवइ,
१-अलोपता -प्रभावि।