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जिसउ के प्रधान, अथवा गुन्जार्ध राग समानु । अति हिंगुलो नउ रगु, ऊगतउ एहतउ सुरगु । अधकार हरु, जगत प्रकाश करु ।
आकाश विभूतिइं प्रोटहयउ, प्रलयाग्नि जिसउ हुइ रह्यउ । सत्कर्म साक्षात्कु, दिग्वधू ना नाक नउ जिसउ मौक्तिकु । लोचन विसमउ, सुहणउं सातमउ ।। ४६ ।। नै.
(८७) ध्वज (८) पंच वर्ण पानड़े करी गहगाउ । साथीए करी सनाथु, जिस्यउं हुई साचउ सुकृत नउ हाथु । वली पुष्प वृक्ष नउ अकूरउ, दानव वंश दलिवा सूरउ । वाइ करि फरहरइ, जय श्री वरइ । विज्ञान करी विचित्तु , स्वप्न माहि पवित्त । देवीइ इसउ ध्वज दीठउ ।। ५० ॥ जै.
(८८) कुम्भ (8) स्वप्न माहि निर्दभु, सुवर्ण मइ कुम्भु । गूंहली उपरि माडउ, अलक्ष्मी छाडउ । महामानि, अलंकरथउ श्राबा ने पानि । चिहुँ वाटि करि पट्ट वड़ी, अपरि प्रधान टीबडी। मागलिक माहि पहिलउ, आवउ वहिलउ । तडि आठ मागलिक अविद्ध मोतीना, किम न उल्हसइ स्त्री जोतीना । स्वामिनि मरदेव्या, पूर्णकलश सु नव स्वप्न अनुभव्या ।। ५१ । ने.
(८६) सरोवर (१०) महा मनोहर, दशमउ देखइ सरोवर । पाणी भरिउ, राजहंस ने युग्मे अलंकरिउ । चकोर चक्रवाक नासइ, महा मत्स्य हसइं। श्राडिनी उलि एक लग, बहु विध ढीक बक । सार कुटलई, पर्वत प्राय मगर गल लइं। . माहे कमल उन्निद्र, जाणेच्छह समुद्र । चन्द्रमा मिलवा नइ करइ कल्लोल । हिम वर्ण टीस्यह पालि वली, जिहां छह सच्छाइ वृक्षावली ।