________________
( २१५ )
(८४) पुष्पमाला (५), पाचमउ पंच पुष्प माला, पांचमउ स्वप्न देखइ बाला । भरीई परिमल ना केउल, एहवा बउल ! गंधिकरी गाढा लांपा, इस्या चापा । सेवत्रा, सौरम्य गुण भरया। लोचने नाशिका पुट अनुहरा, वेल विकस्वर । पहिरिवा दरिद्रीइ, थाइ वाही उर ईश्वर। अनेरा पुष्प प्रति कटक, इसा पुष्प कोरटक । पाखलि फिरइ भ्रमरना वृंद, इसा कुद मुचकुद । अति हिइ बहु मूल, जाइ ना फूल ।। मस्तकि पहिरता करणी, बिवणी शोभा थाइ करणी। सोनडी हह कइ जासूना, जूजउ फुलीना सूना । अति सुविशाल, राणी देखइ प्रधान पुष्पमाल || ४७ ।। जै
(८५) चंद्र (६)
जेह नइ नथी कलकु, इसउ शशाकु । छउ स्वप्न देखइ, अमृत नह उवेखइ । नक्षत्र माहि नाथु, शीतत्व गुणि करि ऊभ्यउ हाथ । जगत्रय न्हइ आणंदकरु, भालस्थल थ्यु न मेल्हइ अध घडोइ ईश्वर । रोहिणी नउ भतर, ज्योत्स्ना करी अपार । अमृत नउ कुण्ड, महिणारभु। मयी देवे मेल्हड हुइ, निसउ मारवण नउ पिंडु । सूर्य ने किरणे गलिवा बीहइ, तउता अधिक न दीसह ते दोहइ । जल निधि रुपीया ज भमंतु, थ्यउ वडवाग्नि बीहतउ। जाणे झडयउ पारउ, लोचन नह पियारउ । श्राकाशि महिषी ना मुख फेणु, वाहणि पणु । इस्यउ चन्द्रमा टीठउ ।। ४८ ।। जै.
(८६) सूर्य (७) अति हिया घणउं, सुयणु सातमउ । तेज नउ भर, देखइ दिनकरु ।