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(२०३ ) अभिषणीय हह अभिषणीय, अनुगमनीयहइ अनुगमनीय । मान्य हइ माननीय, गल्याहइ गरुयउ।
• (पु० अ०)
(५३) तपोधन अनुवरतु ग्रामानु ग्रामि विहार क्रम करहि, अढार सहस सोलाग धरइहिं । अनुवरतु परमेश्वर तणी आज्ञा अनुसरहिं, अनुवरतु गुरूपदेसु स्मरहिं । अनुवरतु पुण्य भडार भरहि, अनुवरतु मोक्ष लक्ष्मी स्मरहि । अनुवरतु तप तपहिं, अनुवरतु कर्म क्षपहि, खगधारा चंक्रमण कल्पु, निर्विकल्पु । व्रतु परिपालहि, इमा महासत जंगम तीर्थ तपोधन भणियहिं ॥ (पु. अ.).
(५४) तपोधन वर्णन पाँच भरत पाँच ऐरावत पॉच महाविदेह, सत्तरि सउ ार्य क्षेत्र ॥ पइतालीस लाख मनुष्य क्षेत्र माहि जे साधु ॥ साधु रत्नत्रय साधइ, जिनाजा आराधइ ॥ च्यारकषाय परिहरइ, नवकल्पी विहार करइ ।। अढार सहस सीलाग धरइ, दस विघि यती धर्म आचरइ ।। बाईस पसह ऊपनइ न डरइ, चवदह उपगरण घरइ ।। पचमहाव्रत पालइ, छाउ रात्री भोजनचार'ऊचालइ ।। तेत्रीस श्रासातना टालइ, अाठे मद गालई ॥ वर्तमान कालई, इग्यार अंग सूत्र प्रकासह जिणइ करी मिथ्यात्व पडल नासह ।। तेरह क्रिया ठाण वरूपई, सत्रे विध सजम धुराअह पह। - सत्तावीस गुणे सयुक्त माया मिथ्यात्व नीयाणाटि साल विप्रमुक्त ॥ बइतालीस दूषण रहित आहार ल्याइ पाच टोप मांडलना लागया न ग्रह । पंच सुमतइ सुमता, त्रिहुं गुपतइ गुपता। , संयम रमणो सुरमता, दुक्कर पंचेंद्री दमता ।
१-टारइ।