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( २०२) जिम खड्ग धारा ऊपरि फिरी' न सकीयई। .. जिम वैश्वानर मध्य प्रवेश करी न सकीयइ,।' जिय राघावेध साधी न सकीयइ । निम पाणी पोटलह बांधी न सकोयइ । जिम वायनउ कोथल उ भरी न सकीयई। ४३ जो० ।
(५१) नवकार महिमा (१)
त्रिभुवन माहे सार,
धर्मकल्पद्रुम प्रकार। समरण मात्र,
करे भवापहार । प्रकृति ही उदार । लक्ष्मी निवास,
निजि श्रीया वास' लडां धर्मफल देखि,
प्रमाद उवेखि । आलस परिहरी,
आदर करी ॥ (पू०) (.५१ अ०) नवकार महिमा (२) पुण्य तणे विषे भावना सहित लाभ लेवो, जिण कारण भणी इस्यू कहीइंजिम प्रसाद सोहें कलस सहित, जिम सरीर सोमे शील शृंगार । निम सरोवर सोमे कमल, जिम पुष्य सोमे परिमल । जिग मुख सोमे निगल नेत्र जुगल, जिम रात्र सोभे चद्र मंडल | निम विवाद सोभे कूर, जिम उछव सोभे तूर, जिम नदी सोभे पूर। जिम हृदय सोमे हारि, जिम गृह सोभे अम नारि । जिम मस्तक सोहे केस प्रागभारी, जिम कर्ण सोहें स्वर्णलकारी । लिम समक्ति सोमे भावना, तिम मुख सोभे नवकार । एहवो पचपरमेष्टि नवकार"
(विनयसागर प्रति) (५२) संघ
सवु, वंदनीयः वन्दनीयु, पूजनीय हइ पूजनीयु महनीय हइ महनीयु, त्गृहणीहइ स्पृहणीय
१. जाती। २ नाहि । ३ पनी। ४ वधु वीधी। +क अन्यनि ने-निमम गठबत पाली न सकिया' पाठ अधिक मिलता है।