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तुच्छ मच्छर, कर्कश स्वरु | धर्म रंगु, गुरुजन प्रशंसा भंगु ।
तुच्छ
सुकृत करणी प्रमाद, बहु मृषावाद ।
साप्रत वत्त'द्द इसउ कलिकालु, जिहां को नहीं कृपालु, दर्शन उत्खलु ।
श्रार्यजन स्वल्प, घणा कुविकल्प 1
बहु कराक्रान्त देश मंडल, पृथ्वी मंद फल |
नारी विकल निरर्गल, ऋषि भाजन खल |
साधु लोक श्राकुल, रान तुच्छ बल ।
गुरु कलह कदल, धर्माचार्य चंचल, भविक धर्मं विकल ।
खड वृष्टि, बहु स्त्री सृष्टि |
लोक द्रव्य दृष्टि, सर्व लोक मिध्यात्व दृष्टि ।
लोक घटियइ कपटि दल, इसी प्रवर्त्त कलि ॥ १०० ॥ ( मु० )
२४ --- कलिकाल -वर्णन ( २ )
सप्रति वर्त्तह्नं कलिकाल, महा कूड़ कपट काल !
चोर चाड साक्षात हालाहल, सासू बहू परस्पर कलि ।
गुरु शिष्या जायद खांध बलि, अन्याय कुरीति देश मंड़लि /राजकुल रुंघा खली, राय राखा वर्त्तई छली ।
क्षत्रिय नासहं दीठहूं दलि, भला माणूस हुइई तांतलि | पृथ्वी मद फ्ल, मंत्र सवे निफल ।
ast मूली रस विकल, कुल स्त्री निरर्गल ।
न्यायी राय तुच्छ दल, चरड बहुल 1 वाट पाडा तणा कलकल, धर्म गुरु चपल । पापोपदेश कुशल, मिध्यात्व निश्चल |
लोक माया बहुल, अल मंगल |
इइ कुकालि, श्रवसर्पिणी कालि ।
अल्प क्षीर गाइ, निःस्नेह माह | ----
भक्ष्यभोज्य निरास्वाद, स्त्री तणी जाति श्रमर्याद, 1
रहस भेट, रस छेद |
क्रूर संचना, गुरु वंचना ।
ऊषा स्तोक, निवाखिना लोक ।
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