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नैरती बाय वानइ, भूपति ना हीया मानइ मिल्या मेह नासइ, न रहद को केहनइ पासह । धनवंत सीदाय, तउ रांक नी सी गति थाय । मारग हुआ महाविषम, सचरइ चोर चिहुगम गोरू विण दीसई गाम नह देस, वाल्दा छोडि राया विदेस । माणस माणस नइ भखइ, आपणौ परायड नोलखा लोक वेचवा लागा पुत्र, छाडीजइ.फूटरा कलंत्र रोता बालक देख, तू पनहु दयानइ देख । लोक घणा निर्धन यया, उत्तम सु नीच घर गया । वडा जे जंगम यती, तेह पिण ताकइ कोइक सती । केइक घांन ना घणी, तेतउ वावरइ अन्नमिणी । पाताळ भोग लीजइ, सगड सगा नहन पतीजइ । पहिलउ जे लेता वनस्पती, तेह पिण न दीसइ रती लोक भला लान छोड़ी, मांगिवा लागा हाथ ओडी। बीला सहू भोग भागा, सहु ध्यान धान लागा। कहालता जे दातार, ते पिण मांगइ कही करतार । वोसरथा सर्व कला गीत, घरि घरि कीजह अन्न री चीत रूड़ा जे राउत राजा, ते पिण ताकइ लोक ताजा । सर्व लोक निर्धन हुवा, बाप वेया रहे जूजुश्रा । वंचिवा लागा लोक, सगपण सेंघ हूई सहू फोक । घl किंतु पतिसाह, ते पिण करइ धान ऊमाह । केतलुं कहीये एक रूप, जेहनी वात भय रूप । एहवइ महा दुकालि, घोर पुन्यवंत दीयइ दान सालि ।
इति दुर्भिध्य वर्णनम् ।। कु० ।
२३-कलि-वर्णन (१) ईणइ अवसर्पिणी कालि, समइ समइ अनंत गुणी हाणि । बलि माति सम्य, अबुद्ध नरेन्द्र लब्ध । रस निरास्वाद, लोक स्तोक मयाद । - अविवेकि वासु, धर्मवन्त नासु । हुएड संस्थान, अल्प विज्ञान ।