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मुहुंडा रइ कांइ लागी कुटेव, सदैव जिमइ सातू जल सेव । गजीणा खानां, चिहुँ श्रामि साजां ।
परीसरि हारि किम नइ थाहं श्राकुली, जीमह भली साकली ।
घणी खाड करी बहू मूल्या,.. अमृत पाहिइ मोठी, ताप अंगीठी ।
ते तलाई माहि सगुण, श्राव्यउ माह नइ फागुण |
सीय ना कोट टीसइ, दरिद्र ताढि मरतां दात पीसइ ।
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हिम नाम, न खडाई श्रोढणु लामई ।
काष्ट दाघ सीय पडई, दांत खटहडइ ।
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घर जीमइ सपराणी रोटो, पुण न सकीइ नीगमी रात्रि मोटी ।
फूल माहि पडवड, फूल नह मिसि विइस्यु -टीसइ कूदड़उ ।
राति सघळीइ रहट वहहं, ऊन्हाळऊ धान गहगहह ।
पुण्यवत लोक, रहित शोक ।
रम होळी, फागु दिइ भमल भोळी ।
ऋतु सारी सबळ, सेवीइं आदा गुळ ।
रोग नउ ममु, जड सोयाळइ कोइ श्रस् ।
भल तळ्या गुळ्या नीमद्द, सोयाळा ना दिन सुखिइ गमीह ||४०|| ( मु० )
१ याईजइ २ वह्नि ।
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१६ शीतकाल वर्णन (१)
विउ ऋतु हेमंतु, भोगी प्राणीयह अत्यंत । जिहा सीय ना भर, सेवीयइ निवति घर | तुलाईयह पढीय, सखरी सीयरक्ख श्रोढीया | श्रति हि मोटी, मजीठी दोटी ।
प्रोढ़ी बहसीयह, सीयाळा नह हसीयइ । निमता न घरईयर' उत्सुक, भावइ विविध मोदक | मृत पाहि मीठी, लोक तापइ अंगीठी ।
तेतला माहि सगुण, श्राव्या माहन्नइ फागुण | सीना कोट दोसs, दरिद्री टाढि मरता दात पीसइ ।
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