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আর আম বা বিরদ্ভেব ?
१६ वर्षाकाल वर्णन (५) ऊपरि मेव गडगड़इ, अमोच धारा पाणी पड़ह, अनेक घर खडहड़इ, कद्द मि वृद्ध अड़बड़इ, दुर्दुर रडई । बीज झत्राक नाइ, पामर लोक घर छाइ, पथिकलोग ठामि ठाइ, पृथ्वी हरिताकुल हुइ । सरोवरहुया गडलु, सर्वत्री टोडा प ( ख ?) डई । बगुला रूखसिहर ऊपरि चडई, वासर गिरी कदरि वीसमइ हंस पहुचइ मानसिसरि, " .....। मयूर नाचइ, विरहणि सोचइ । करसणी लोक हल खेडइ, धनवतलोक धान खेडइइसउ वर्षाकालु ||पु० अ०
१७ शरद ऋतु वर्णन (१) जन्दालो नउ भाई, अनी लेई वैश्वानर नऊ अंगु काई । न जाणीइ किहाई हूंतउ दिशि सप्रकाश, शरदऋतु पहुतउ फूल्याकाश । अगस्ति अगिउ, मेहनठ भरग्यउ । पाणी थ्या निर्मल, करसण सफल । - चद्रज्योत्स्ना शीतल, पीजई अभावताई जल । हंस स्वर सुखावा विलसिश्रा लागा ललभ (त) वर्ण गावा । स्त्रो सुनेत्र, डोहइ क्षेत्र । साड मावइ, कोठीबड़ा पावई । वैद्य सुविचारू, करइ पित्तोपचार । करीइ स्यूंस खाइंई, खांडु नइ पुहुंक खाईई। पूगी लोक नी आस, महा भरिवा परया कपास । कोठा अन्न भरीई, कुणहि हुई काई न करीई ॥ ३८ ॥ (मु)
१८ हेमन्त ऋतु (१) , . अति वसंतु, आविइ ऋतु हेमन्तु । - जिहा सोयना भर, सेवीइं निर्वात घर । तुलाईए पुढीई, मी तुलाई उढइ । अति ही मोटी, प्रलंब दोटी। अोढी बईसीइ सीयाल हुइं हसीई। निमतो न थाई त्सक वेटा जिमई अनेक विध मोदक ।