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, ( १२७ ) हाटि बिचै वाहला, लोक थया काहला',.. जूना घर पडै, लोक ऊँचा चढे । श्राम हुश्रो रातो, मेह थयो मातो। हाली हल खडया, वाडी सूं सेरा जडया। नीली हरियाली महमही,२ घणा दूध नै दही। ' मारग भागा, जे निहा ते तिहा बहसवा लागा । गयो दुकाल, हुप्रो सुकाल। पाणी छडै पाल, एहवा वर्षाकाल । (स०३),
१५ वर्षाकाल-वर्णन ('४') वर्षाकाल हूउ वहतउ रहिउ कूडं। कालूत्रणि वहह, मेघतणा पाणी वह।। । पथिक3 गामि जाता रहा, पूर्व दिशि तणावाय वायइ । लोक हर्षित थाइ । .........। श्राकाश घडघडई, खोलड५ खडखडइ । पंखी तडफडई, वडा मानुस अडवडइ। काष्ट खंड सडइ, हाली लोक हल खेडई। ..... श्रापणा घरबारि कादम फोड़ई, तिहा मुडि २ वेलू रेडह । पाणी पार न लहइं, साधु साध्वी विहार न करई। श्रावण लोक जयणा करई ।... अनेक जीवाधि१० नीपजई, विविध धान्य ऊपजहं। , लोक तणी श्रास पूजइ, गोकुलना वृंद दूझई। . अनेक कोठार भरियई, जूना धान्य वावरियइ । १२ श्रावई रेलि, बाधइ वेलि। १३ऊपजई नीलि फूलि, कुटंबी कणवीकइ मूलि । १ फीटउ दुकाल, नीपनउ सुगाल ।। . एवं विध वर्षाकाल || ४१ ।। ( स० १).
१-पाकुला २--हरी टहडही । “३-वाविपाणी भरतो रखा, वादल उनह्या। ४-पथी। ५---खाल । ६~-लड़यडै ७-फे.। -वीजा काजमे है। हथई । १०-जीव । ११-~-गाय भैंस । १२-अनेक लपस, लोक ह से । १३-अनेक वनस्पति फूलै । १४ दुकाल नासीजे, सुकाल होइजै ।
(स०३)