________________
( १२६)
फोरवियइ तप री' सगति, श्रावक करड२ भगति । स्यउ बंधुवर्ग,3 साधु नह इहाई स्वर्ग । लाभइ प्रासुक" आहार, तउ लेवउ ६ व्यवहार । बहसइ श्रावक सुजाण, भला करइ वखाण । पुण्यवंत नइ सगलइ पूरउ, नहीं मुनिसर' नइ काई अधूरउ ।
(कु०) १३ वर्षाकाल-वर्णन (३) ऊमटी घटा, बादल हुई एक्ठा । पडइ छय, अलसै१० कुलटा । भाजै भटा, भीजै लटा। पुहवि पुण्य प्रगटा, ऋषिराजान ठामि बइठा । मेह गाजे, जाणे नाल गोला बाने। दुकाल लाने, सुवाय बाने। इन्द्र राजै, ताप११ पराजै। बोनली झत्रके, पाणी भभकें। मेह टवकैं, हीया द्रव । नदी खाल उवकै, वनचर भवकै,१२ आयो अवकैं। घणा जीवनी उतपत, को पंथ चालो मत। . बोलें मोर, डेडक जोर,१3 दादुर करें तोर । अंधार घोर, पइसैं चोर। भी. ढोर, स्त्री करैं निहोर । चंद सूर बादलै छायो, पथि घरे श्रावि धायो । मेघ बरसै सवायो, रूठो नाह मनायो। खलक खाल, वहै प्रणाल। चचूई बाल, चूई अोरा साल । साप गया पयाल, नदी वहै असराल । झडो लागी, करसारी१४ दिसा जागी । वरसइलो पूर, भाले रूख चकचूर ।
१ जोमवानी हुई २ गाढी (मु ) धणी (सु) ३ सू करइ अपवर्ग (मु) ४ महात्मा हुई (नु) ५ परपल 'विशेष पाठ' (मु) ६ स्याकार करइ विहार (मु) ७ सहु करइ (मु) ८ तपोधन हुई। ६ घाटा १० उलट ११ दाप।
१२ लवकै १३ टेड करै सौर १४ लोक दशा (को)