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(१२५) कुडा बहक्या, केवड़ा महक्या । कुंद उलस्या, करसणी हरस्या । फटंव महमह्या, मयूर गहगह्या । पपीहा वासइ , विरहणी उसासई। पर्वत' नइ सिखरि स्नेह नइ भरि । सीगडू वायइ, मल्हार गाइ । भील नाचइ, महिपी माचई ।
ठा मेह, उलस्या स्नेह । नदी पूर वहिवा लागी, पग न लहई पागी। जल सू भरया निवाण, पृथ्वी प्रवत्ता मदन नी प्राण । हरी प्रगर हुआ, दीसइ वराह रा जूथ जुजुमा । सालूर ना सांभलीयह स्वर, जाइ दीसई विकस्वर । भला केलिवीयइ वालर, वावीयइ झालर । अति सरूप, नींबूना नीपजइ झूप । ठामि-ठामि' मन मोहीयइ, शालि ना क्यारा डोहीयइ । गुहिरउ मेह गाजह, दुर्भिख्य तणा भय भाजइ ।
आगम नरेसर ना जाणे नीसाण वानइ, वग पक्ति विरानइ । वाव्याकरण वाघद, लोक धर्म कर्म वेवै साधइ । वेला लहलहइ, सर्वलोक' आचारइ रहइ । पर्वत थी नीमरण छूटइ, भरिया सरोवर फूटइ । मघा अधकार विस्तरइ, कमल परिमल निस्तरइ। , अखड धार पाणी पड़इ, करसणी क्षेत्र खडइ । सीम नड़इ, लोक ऊँचा चडइ । केई एक तिलकी पडइ, कोठार खोलीनह । . कढीयारा दीजइ, एक-एक नइ पतीनइ । धान रा धणी छीजइ, कागदी पीजइ (काम दीपीजइ) असबाब सहु भीजइ । इसउ वर्षाकाल जाणी, हीयइ 'सतोष आणी। साधुमास च्यार एक ठउड़ि रहइ, पीठ फलक संग्रहइ । घणू स्यू कहीयइ, जइ रूडू थानकि लहीवइ, तउ चउमासि एक रहीयइ ।
१ वप्पीहा (सु०) (सु) • सोंगलू (सु० ) (मु०) ३ देश-विदेश नी वाट भागी (मु०) ४ कोलविइ (मु०) ५ अणवावै (मु० ). [(सु) और (मु) प्रतियों में यह पाठ महीं है।