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अवल्ल जीमिई, .... । केसरीलाल, रमोगुलाल । बइसौ च उसाल, एहवो उमणकाल । ( स० ३)
१० उष्णकाल-वर्णन (२) महा पित्त' नउ श्रालउ, श्राव्यउ उन्हालउ । जून वाजइ, काननी पापड़ी दाझह । झामुमा वलइ, हिमाचल ना शिखर गलई। निवाणे खूटा नीर, पहिरीई श्राछा चीर ।
थेली जेवडा, जीमई भोना वडा । एवड़उ ताप गाढउ, भावइ करंबउ टाढउ । पाचइ वण, राणी ना ढीला थायइ काकण । वायु वाजइ प्रत्रल, उड़द धूलि ना पटल । सियालइ हूती राति मोटी, ते उन्हालै थई छोटी । - सूर अापणपई तपइ, जगत्र संतापह" ।
जे जीव यलचरई, ते जलाश्रय अणुसरह । लोक ल्यइ आत्रलवाणी६, मेली टाढा पाणी । केइक जीमई खाटा, तड़कउ टालहं बाधा बाटा । साहूकार ल्यइ साकर, तपति नई सिर धइ टाकर । एवउ उष्णकाल, फूलइ अब डाल ।
११ उष्णकाल-वर्णन (३) जिसी दावानल तणी ज्वाला तिसी लू वाई । निसिउ बावन्न पल तणउ गोलउ घमिउ हुइ, तिसिउ आदित्य तपइ । जिसी भाड तणी वेलू तिसी भूमिका धगधगइ । मस्तक तणउ प्रस्वेद पानी उतरइ । धर्मि जीवलोक गलगलइ, श्रीमत तणा चउबारों झलहलइ । जलद्रा शरीरि लगाडीपई, गुलाल १०, तणा अभ्यगम'१ कोजह । बावन्ना श्रीखडघसीयई, चउदिसिहि वीजणा फिरई ।
१-पित्र २-जीमइलोक ३-रणीय हुइ ढीला थाइ काकण ४---सीयालइ हुती मोटी रात्रि, ते नान्हीथई रात्रि, ५-जगयउ तपइ ६-श्राछिल वाणी ७-तपति माहि फिरइ कागलिया चाकर फलीयइ अ वा कालि। ६-पाल्ही। १०--गुलाम ।
११-अभ्य ग।