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काइ न कहवाई छै, दूती उतावली धाई छै, संदेसो कहवा जाइ छै ।
केड़ते कसै छै, चोरते धँसै छै, कूतरा ते भसै छै । है, नीला जवते चरै छै ।
घोड़ा ते ह
कोटवाल ते फिरै छै, चोकी ते करै छै ।
रणतूर बजावै छै, 'खबरदार- खबरदार -- जागते रहियो - जागते रहियो' कही नै जगावै है, चोर-चकार नै भजावे है ।
घणी सी कहीइं वात, दुसमणनी न पूगै घात ।
मनुष्यनी नो यात, एहवी अंधारी रात । (स० ३ ) ७ अंधकार - वर्णन (१)
काली लली - रात्रि रात्रि प्रतिइ मिली ।
निसी भ्रमरनी पाख, जि० श्रजनाचल नउ शिखर | जि०
० कुमारास सुख, जि० स्त्रीतरणी वेणि ।
जि० यमुना प्रवाह, नि० कजल नउ वार |
जि० गुलीनउ रंग, निसिउ कसीसनउ जल || ७३ ( स० १ )
वसंतऋतु - वर्णन (१)
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विरहिणी हसंतु, पुहतउ वसतु ।
फूलइ वणराइ, नगरमाहि न फिराइ |
लीइ तिम' निजईय वनि ।
मेल्ही वइराग, खेलीइं फाग ।
कामरान ना कूंप, तिसा मस्त कि रचीह चूप । ति सुविशाल, श्राव नी डाल !
तिहा बाधीइ हिडोला, रमइ नर भोला । फूलहरा भरीइ, भला कदलीगृह अनुसरी | कोइलि वासs, रुलीईत विलासी नासइ | भर्त्ता स्त्री र लिए, खेलहि खडोसली ए । विहसी वउलसिरी, भमई रहइं भमर पाखलि फिरी । चपक नी कली, चपक ऊपर नीकली । मस्त कि मरू, पहिरे लोक गरुश्रा । रितुराज नउ भालु, वनि मद्दक्यउ वालउ | परिमल भारी, उल्लसी देव गंधारी । दमणउ पहिरी, कुण एक चित्तु न हरीह ।