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(१२०) पान मिठाई ल्ये छई, पईसा दे छई। झालर झणकै छई, रणीसींगा रणकै छई। शंख भएकै छह, कतेक भणे छह । तसबी गिणे छइ, खटकर्म ते करै छ । लोक अरापरा फरै छइ, दीवा हाटै घरै छ । तेल ते भरै छई, सध्या ते फनै छइ ।। ( स-३)
५ चन्द्रोदय-वर्णन (१) गजलक्ष्मी स्फाटित टप्पणु, चकोर संतपणु । अमृतमय किरणु, तिमिर हरणु । मुग्धवधू विदग्ध शिक्षिणोपाय, प्रणय कुपित कामिनी माननोपाय । विरहिणी हृदय करपत्रधातु, चकोर टत्तलातु । चक्रवाकु नि.कारण शत्रु, कन्टपराजनउं छठ । अमृतइ भरिया चन्द्रकान्तु, यामिनी-कामिनी कान्तु । प्रकाशित कुमुदाकार, इत्यउ अग्यउ रजनीकार ।। ६४ (मु०)
६ अंधारी रात-वर्णन (१) साझ परी गई, गुटड़ी परी थई, टीवे जोति भई । चोहटें भीड़ मिटी, व्यापार नी महिमा घटी, हाट तालूं नटी ।
आप-आपणै घरै आया, फॅची लाया । स्त्री सोले सिणगार सजे, गणिका जारनै भने, घडियाले घडी वजै । सर्वकारज साध्या, पाडा वाध्या, रघारण राध्या ।। व्यालू कीधा, किमाड श्राडा दीधा । सीरख माचा सभाल्या, ढोलिया ढाल्या । ऊपरि पहतेडा वाल्या, सूवा नै भाल्या, जामण घाल्या । मिठाई खाइ छै, कहणी कहवाइ छै, नींद श्रावै छै। सूपा पडया, नार परस्त्री नै अडथा । अघकार व्याप विस्तरै, कुमाणस पर घर सचरौं । काजल जेहवी, स्त्रियोनी वेणी जेहवी । यमुना ना प्रवाह जेहवी, रेवतकाचल जेहवी । अजनाचल जेहवी, पटाझर कुंजर जेहवी, कालीघटा जेहवी। काली काली स्याम, ..."। हाथे हाथ न सूझै, कोई कोईनै न बूझै, विचार माणस मूम। .