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रंगीला,
लटकाला,
( ६५ ) १४ रूपालो ( रूपवान) पुरुष (१४) छयल, छत्रीला, रूपाला रलियामणा, ललिताग,
ललितगर्भ, लीलाभोपाल, लीलावत, सुश्राला,
भटकाला, लवणवत, मीठाबोला, मलपता, मा (म्हा) लता, विनोदी, विनयी,
ख्याली,
खुस्यालो, सौभागी, सुदर ॥ एहवा
रूपाला ॥
( स०३) निर्द्धन होने पर भी सत्पुरुष
१५ प्रतिभा-वैशिष्ठय पुरुष उपमा (१५) निर्द्धनोपि सएवोतमः पुत्प. यथा-भग्नमपि वाराह । श्रातोपि पारसीको हयः, रक्तोपि कपूर समुद्कः । खडोपि निशाकरः, अच्छादितोपि दिवाकरः । दुर्बलोपि सिंहः, शुष्कोपि वकुलश्री विद्धापि मुक्तावली । फाटितमपि रत्न कत्रल' । मलिन मपि दुकुलं,तृप्तमपि गंगाकूल । ग्लानमपि इक्षुखंड, जीर्णमपि शर्करा खड ।। ७४ । ( स० १)
१६ दुर्जनवर्णन (१) दुर्जन एवउ दीसइ, बाहिर हेजालूयोहीयउ हीसइ । अतरग वलइ रीसइ मिलइ सुजगीसइ ।। अाघेरउ जात (प्र) टॉत पीसइ , मुहि मीठउ, चित्त वीठउ । पराया छल छिद्र जोवइ, विणास विण विगोवइ ॥ परम प्रसंसायइ खीजइ, उपगारन सहसे न लीलइ । पर मर्म भाखड़,
साच करी दाखइ ॥ पहिलउ विचार माँहि आवइ, अवसरे खिसी जावइ ।। मुहडइ सहू सु लिबास, वाह नउ न करइ बिसास । केहनइ वचनि न पतीजइ, जड आपणउ चित्त दीजइ ।। तोही भीजइ न सीजइ, वार वार स्यु कहीजइ ।। न सगा, न सणीजा, जाणु मो तारिखा करू बीजा ।।
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१ लावण्यवत