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आस्थान मडप या नात्यायिका के लिये होना चाहिए जहाँ पाट या सिंहासन रहता था। किसानों को कई वार कर्षणीलोक कहा गया है। इसी प्रकरण में कलिकाल के भी कई वर्णन हैं। कलि वर्णन मध्यकालीन साहित्य का एक अभिप्राय हो बन गया था। प्राचीन राजस्थानी और हिन्दी में कई कलियुग चरित्र मिलते हैं । बान कवि ने संवत् १६७४ में एक कलियुग चरित्र की रचना की थी। उससे २०० वर्ष पूर्व सवत् १४८६ में हीरानन्द सूरि ने कलिकाल रास लिखा था। गोस्वामी जी ने उत्तरकाण्ड में कलिधर्मों का बहुत अच्छा वर्णन किया है। वैसे तो गुमकाल से ही इस प्रकार के कलिचरितों की रचना होने लगी थी। विष्णुपुराण में सर्वप्रथम कलिचरित का सन्निवेश हुआ है। लोकमाया बहुल, अल्प मगल, यही इन कलिमलो का सार था । याउखा स्तोक, निवाणिजा लोक अर्थात अायुर्वल थोडा हो गया और लोगों का व्यवसाय धन्धा जाता रहा यही कलि प्रभाव है । रामचरितमानस का कलिवर्णन उसी परम्परा मे है । ___ विभाग ५ में कला और विद्याओं की सूचियाँ हैं । इस प्रकार की अन्य कई सूचियाँ सस्कृत साहित्य मे भी मिलती हैं। उनके साथ तुलनात्मक अध्ययन के लिये ये सूचियों उपयोगी हैं। प्राचीनकाल की अनेक विदग्ध गोष्ठियों में इन कलाओं की आराधना की जाती थी, जैसे वक्रोक्ति, काव्यशक्ति, काव्यकरण, वचनपाटव, वीणा, कथाकथन, अडविचार, प्रश्न-पहेलिका, अन्ताक्षरिका अाटि विषय मनोवनिोट के साधन थे | पृष्ठ १४० पर ४७ राग-रागिनियों की सूची है और पृष्ठ १४१ पर बाजों के नामों की दो बडी सूचियों हैं। पृष्ठ १४० पर बद्ध नाटक में ३२ अभिप्रायों द्वारा संपादित नाट्य विधि का उल्लेख है जो जैन-परम्परा में प्रसिद्ध हो गई थी और जिसका विस्तृत वर्णन रायपसेनिय सूत्र में पाया है। पृष्ठ १४३ पर लिपियो की ३ सूचियाँ हैं जिनमें कुछ नाम तो काल्पनिक और अनेक नाम वास्तविक जीवन से लिये गए हैं, जैसे नागरी लिपि, लाट लिपि, पारसी लिपि, हमीरी लिपि, ( अमीर या तुर्की सुल्तानों की लिपि), मरहठी लिपि, चौडी (चोल देश की तमिल लिपि), कुकुणी, कान्हडी, सिंहली, कीरी (कीर या टक्क देश की टक्की लिपि)।
• विभाग ६ में जाति और धन्धो की उपयोगी सूचियाँ हैं । इनमें ३६ पौनि या नेगियों की नामावली भी है जिनका उल्लेख साहित्य में पाता है। अनेक पेशेवर जातियों के नाम रोचक है जैसे दोसी (दूप्य या वस्त्र का व्यवसाय करनेवाले ), पारखि ( रत्नों की परीक्षा करनेवाले ), पटउलिया ( पटोला बुननेवाले ), भोई ( सस्कृत भोगी, हाथियों के अधिकारी), वेगरिया ( सस्कृत वैकटिक, रत्न तराश ), परीयट (बरहठा या धोबी जिसे देशी नाममाला में परीयदृ कहा