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राजकुमार के वर्णन सामान्य कोटि के है। किन्तु राजसभा के छः वर्णन ( पृष्ठ ५८-५६) महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सामग्री से भरे हुए है जिनकी व्याख्या विस्तार की अपेक्षा रखती है । सिगरणा (श्रीकरण का मुख्य मंत्री निसे आजकल की भाषा में गृह मंत्री कहेंगे ) और वेगरणा ( व्ययकरण का अर्थमंत्री) मध्यकालीन नचिवों के नाम थे। साहणिया या साहणी (अश्वत्ताधनिक) नामक अधिकारी था । राजसभा के पोचवें वर्णन में उसे महामसाणी (=महासाहणी महासाधनिक) कहा गया है। इसी प्रसग में थैवायत शब्द उल्लेखनीय है । नाहटाजी ने सूचित क्यिा है कि राज दरबार में ताम्बूल आदि देने वाला सम्मानित व्यक्ति थैयायत कहलाता था । श्रीपालचरित में उसका उल्लेख है । पृष्ट ६३-६४ पर तीन बार लाहे के महाकाय भोगल का उल्लेख है । हमारे लिए यह नया शब्द है और प्रतोली और पाट के प्रसंग में इसका अर्थ परिघ या दृढ़ अर्गला होना चाहिए। गज वर्णन के ६ प्रकार और अश्व वर्णन के ७ प्रकार संगृहीत हैं। इनमें स्तागप्रतिष्ठित विशेषण हाथी के लिये प्राचीन पाली और संस्कृत साहित्य मे भी अाता है। अश्वों के नान रग एवं देशों के अनुसार रक्खे जाते थे जिसकी पयांप्त नई मामत्री इन सूचियों में है। पृष्ठ ७० पर सेराह, हलाह, उराह,
आदि नाम अरबी फारमी परम्परा के थे। बोरिया या बोर घोड़े का उल्लेख जायसी में भी पाया है। पृष्ठ ७३-८५ पर युद्ध वर्णन के ७ प्रकार मध्यकालीन वीरकाव्यों की रढ शैली पर है। ____ विभाग ३ ३ श्री पुरुषों का वर्णन है। इसमें तत् पुरुषों के गुणों की सूची एवं सजन दुर्जन का परिचय रोचक है । इसी प्रकार पृष्ट ६६ पर उत्तम त्रयों श्री गुण सूची भी सुन्दर है। पृष्ठ ११३-१४ पर मालवा, मेवात, मेवाड, दक्षिण और गुजरात की त्रियों के नामों की सूची पहली ही बार साहित्य में देखने को मिलती है।
विमाग ४ में प्रकृति वर्णन का सत्रह है जिसमें प्रभात, सध्या, सूर्यादय, चन्द्रोदय और छ ऋतुओं के वर्णनों का संग्रह है । माहित्य मे वसन्त, वपां और शरद के वर्णन तो प्राय. मिलते हैं, पर ग्रीष्म के वर्णन कम पाए जाते हैं। बाण के हर्षचरित मे नीप्म का बहुत ही उदात्त और मौलिक वर्णन पाया जाता है । यहाँ उन्हालो या उपगल के तीन वर्णन है । जैसे बावन पल की तोल का नोने का गोला दहकता हो वैने ही सूर्य तर रहा था यह क्ल्पना नई है। बावन तोले माल गलाने का महावरा ही मध्यकाल में चल गया था, जैसा ५२ तोले पाव रत्ती इस लोकोक्ति में सुरक्षित है । पृष्ट १२४ पर वां के कारण पटशाल के टपक्ने का उल्लेख है। पटशाल पट्टशाला का रूप है जो राजप्रासाट के