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पूर्ण है। १।२१ और १।२२ में ८४ चौहट्टो की दो सूचिया महत्वपूर्ण हैं । इनकी एक सूची पृथ्वीचन्द्रचरित्र मे भी प्राप्त हुई थी, जो नाहटा जी की पहली सूची से बहुत मिलती है। पृष्ठ १६ पर स्वयंवर मण्डप का वर्णन करते हुए पञ्चरमी देवाशुक के बने हुए ऊलोच ( शामियाने ) के उल्लेख के अतिरिक्त तलियातोरण उठाने का भी वर्णन है । यह एक विशेष प्रकार का दोमजला तोरण होता था जिसे स्थापत्य की परिभाषा में तलकतोरण कहते थे। पृथ्वीरानरासो के लघु सस्करण मे जिसका सम्पादन पजाब के श्री वेणीप्रसाद शर्मा ने किया है इसी का बिगडा हुआ रूप तिलगा तोरण हम प्राप्त हुआ था। पृ०१८-२१ पर अटवी वर्णन नौ प्रकार से सगृहीत हैं | उसके बाद वृक्ष नामो की छः सूचियाँ हैं। इस प्रकार की सूचियाँ वन वर्णन के साथ संस्कृत साहित्य में भी प्रायः मिलती हैं । विशेषत. महाभारत और पुराणों में वृक्षावली की लम्बी सूचियो के द्वारा ही वन वर्णन करने की प्रथा थी। वृक्षों के प्राचीन नामों मे सहकार कुपाण-गुप्त युग का शब्द था। मूल महाभारत के स्तर में उसे न होना चाहिए था। नन्दन वन के वर्णक की वृक्ष सूची मे वह पडा हुया है, जो इस बात का सकेत है कि वह परिनिष्ठित वर्णन गुप्तकाल मे किसी समय नोडा गया । सरोवर वर्णन के भी तीन प्रकार दिए है (पृ० १२६ )। इनमे शतपत्र, सहस्रपत्र के अतिरिक्त कमल के लिये लक्षपत्र हमे पहली ही बार प्राप्त हुआ है । नदी नामों के अन्त में लिखा है कि १४ लाख ५६ हजार नदियों लवण समुद्र में मिलती हैं । यद्यपि स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में हमें उल्लेख मिला था कि केवल गङ्गा ही ६०० नदियों को लेकर समुद्र मे मिलती है फिर भी प्रस्तुत संख्या अब तक की प्राप्त संख्यायों में सबसे बडी है।
विभाग २ के अन्तर्गत राजा के वर्णन के लगभग १५ प्रकार दिए हैं। पहले वर्णन में गौड, भोट, पाचाल, कन्नड, हॅढाड़ (जयपुर ), वावर (सौराष्ट्र) चोड, दशउर (दशपुर मालवा ), मेवाड, कच्छ, अंग आदि देशो की समृद्धि या विभूति पर शामन करने का उल्लेख है । पृष्ठ ३६ पर अष्टादश द्वीप कीर्ति विख्यात एवं एकोनविशति पत्तनों के नायक विशेषण मध्यकालीन प्रतापी चोल सम्राटों के विशाल सामुद्रिक राज्य और दिग्विजय से लिए किए गए अभिप्राय थे। पृष्ठ ४३ पर चक्रवतों के वर्णन में अनेक सख्याओं का उल्लेख है जिनमें ६६ कोटि ग्राम सख्या भी है जिनकी व्याख्या ऊपर आ चुकी है। रानी,
-शतानि नव सगृह्य नदीनां परमेश्वरी । तथा गाभिधा या तु सैव प्राक् सागरं गता।