________________
( १० )
गया है ), लुई ( संस्कृत-सौचिक या दर्जी ), ताई ( संस्कृत प्रायी या आरक्षक, रक्षा करनेवाला पुलिस अविकारी ) इत्यादि । एक सूची में ८४ प्रकार की वणिक नातियों के नाम हैं और दूसरी में ३४ प्रकार के ब्राह्मणो के । राजपूतों के ३६ कुलो की सूची वर्णरत्नाकर के समान यहाँ भी है। यह पुरानी सूची थी। कालान्तर में जत्र और भी जातिया राज्याधिकार सम्पन्न हुई तब एक दूसरी बड सूची संकलित की गई जिसमे ७२ राजकुलों की गिनती थी। यह सूची भी वर्णरत्नाकर ( पृष्ठ ६१ ) में है । ३६ कुलों की सूची के अन्त में कुली शब्द है, ७२ वाली के अन्त में नहीं। पहले अपने ग्रापको सत् क्षत्रिय ( वत्सराजकृत किरातार्जुनीय नाटक ), तुक्षत्रिय ( श्रीधरदासकृत सदुक्तिकर्णामृत, २९० ) या शुद्ध क्षत्रिय (य. कोऽपिवा साहसी लोके यस्थास्ति वा क्षत्रियतावदाता, पृथ्वीराज विजय, ६ । २२४ ) मानते थे । राजतरंगिणी में भी ३६ क्षत्रिय कुलों का उल्लेख आया है ( ७११६१७ ) जिससे ज्ञात होता है कि ३६ कुलों की कोई एक सूची बारहवीं शती से पहले ग्रस्तित्व में या चुकी थी । इन सूचियों की ऐतिहासिक परख से बहुत से तथ्य हाथ लगेगे । पृष्ठ १५१ पर साहूकार के कई विन्डो में एक 'छत्रीस बेलाउल विखनात' भी है जिसका तात्पर्य यह था कि बड़े साहूकारों की कोठियों या लेन देन के छत्र ३६ बेलाउल या समुद्र तटवती पत्तनों के साथ जुडे रहते थे और उनके साथ उनके हुण्डी - परचे का भुगतान चलता रहता था ।
संवत्सर मुद्रा कणहार विद भी किसी महत्वपूर्ण तथ्य का व्यञ्जक है । सभवत' नये वर्ष के आरम्भ में संवत्सर सूचक व्यापार मुद्रा या भाव-ताव का प्रारम्भ करने का श्रेय रखने वाले शिरोधार्य महाजन के लिये यह विरुद्ध था । इसी प्रकार कडाह समुद्र विरुद भी ध्यान देने योग्य हैं । काह- द्वीप के पूर्वी समुद्र या द्वीपान्तर के साथ व्यापार करने का प्राचीन गुप्तकालीन संकेत इसमें
चच गया था 1
विभाग ७ में देवी देवता आदि का वर्णन है । पृष्ठ १६३ पर श्रेष्ठ के वर्णन में कहा गया है कि उसके यहाँ लक्ष्मी के निधान कलश रहते हैं और लाख धन के सूचक दीप जलते है एक फहराती है । श्रेष्टिप्रवहण्यात्रा के वर्णन मे या माल को देशान्तरोचित क्रियाणा कहा गया है और कूपदण्ड या मस्थूल के लिये कुश्राखम शब्द है ।
करोड की सूचक ध्वजाएँ देशान्तर के योग्य भाण्ड
विभाग में जैन धर्म सबंधी वर्णकों का सग्रह है । समवसरण के वन रत्नमय पीठ, प्राकार, कौशीश, चार प्रतोली द्वार, देव प्रतीहार, सुवर्ण स्तम्भ