SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ अध्यात्म-वर्णन विभाग करो अनरकरण करता है। अन्नगृहतं काल ना का मिथ्यात्वकामदलिक वाला छोटा पुज जो उदय में आता है, उनका क्षय कर देना, और इनके अनन्तर क्षण मे ही बाकी के जो गर्मदनिक उदयाभिमुग्न न हा हा उम पु ज को उपशान्त कर देना है, जिससे उगे २ उगमसम्यवन्य प्राप्त होना है। उस प्रकार के अनिवृत्तिकरण को ही घरमकरण मगसना नाहिए। मिथ्यात्वकर्मदनिको का इस प्रकार अन्तर करना (मेद पालना) ती अन्तरकरण कहलाता है। मिथ्यात्वमोहनीय थे नगदलिको मे जिम नगय इस प्रकार का अन्तर (भेद) किया जाता है, उन गमय प्राणी को जो आनन्द आता है, उसकी तुलना ग्रीष्मऋतु मे रेगिस्तान में दोपहर को चलती हुई लू और कडी धूप मे व्याकुल प्राणी के शरीर पर वावना चन्दन छिड़काने में अथवा रेगिस्तान में किसी हरे-भरे जमीन के टुक्दे को पा कर जो आनन्द जौर मुम्बशान्ति प्राप्त होती है या जो अपूर्व मानन्दमयी परिस्थिति बन जाती है, उगमे की गई है। ठीक इसी प्रकार का आनन्द अनिवृत्तिभरण न अन्त मे और अन्नग्करण के प्रथम समय में प्राणी को होता है । उग नमये उसके गाढ मिथ्यात्वतिमिर की तीव्रता कम हो जाती है, कठोर अनन्नानुबन्धी कपाय हट जाता है, मिथ्यात्व ने उन व्यक्ति को जो गरिनाप दिया था, वह भी मिट जाता है । जिम मिथ्यात्व के जोर में प्राणी नगार में भटकना था, अनादिकाल में उसके जाल में फमा हुआ या, उगनी ममाप्ति होती देख कर उसे बहुत आनन्द का अनुभव होता है, फिर उने सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होने से उसकी उत्तरोत्तर प्रगति होती जाती है। सचमुच अनिवृत्तिकरण मुमुक्षु के लिए वरदानसा है, गम्यग्दर्शन का द्वार खोलने वाला है। परन्तु यह आनन्दानुभूति, यह अद्भुत उपलब्धि उसी को होनी है, जो रागद्वेप की पक्की बत्रमयी गाठ को तोड कर आगे बट जाता है। जो रागद्वेष की गाठ या चट्टान को देख कर घबरा कर वापिस लौट जाता है या वही १ अन्तमुहूर्त काल का मतलब है-८८ मिनट से जरा-मा कम काल । २ जिसका तत्काल उदय न हो तथा मर्वया नाण भी न हो, जो अन्दर दवा हुआ पडा रहे, उरो उपगमन या उपशम कहते हैं।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy