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अध्यात्म-नभर
लौट जाय तो यशाप्रवृत्तिकारण का कोई नहीं रहा या निन यथाप्रवृत्तिकारण तो प्राणी ने अनेक बार लिया। रित ने अनन्न यथाप्रवृत्तिवरण दिया हुआ भव्यजीव अन्तिम पवाप्रवृति याद गाग नहीं लौटना , ज्यो-ज्यो वह आगे बना जाना है वायो गोपरिणामो मे यथाप्रवृत्तिकरण में भी अधिकाधिक निर्मना (टा) होती जाती है.
और एक दिन वह उन विशुद्धनर परिणाम माग गरगनीम और काठोर ग्रन्थी को-जयात गगढेष ने अनिष्टमगारो पो किन-भिन्न कर सकता है। ____ अपूर्वकरण-भव्यजीय पूर्वोन जिन परिणाम में गगद्वैपकी मुर्भेय नयी को लाघ जाता है, उग परिणाम को शाम्ब में अपूर्यकरण रहा है। वपूर्वकरण नाम रखने का मतलब यह है कि जग प्रकार का परिणाग कदाचित् ही होता है, वारवार नहीं होता । उसकारण गे तथा प्राणी ने अपनी ममारयाना में इससे पहले कभी इस प्रकार का प्रन्धीभेद नहीं किया होने में तथा गगट्टेप की पकी गाठ वो तोड टालने का यह पहला ही जबगर होने को गारण आत्मशक्ति के उग अभूतपूर्व उज्ज्वल जीर नाहगा गागं को 'अपूवंगा ' रहा जाता है। इन प्रबर वनग्रन्थी के टूटने मे चेतन गगद्वेग पर कुठार की तरह तीणपरिणामस्पी घाग ने प्रहार करने उक्त ग्रन्थी को शियित पर देता है और अपनी अगूर्व जात्मगक्ति को नमसार को आगे बटाना है, अपनी प्रगति के नये आयाम और नूनन द्वार पोलता है। परन्तु अगुववरण वही कर मकना है, जिनने यथाप्रवृत्तिकरण ल्यिा हो । मगर यथाप्रवृत्तिकरण वाला अपूर्वकरण करे ही, ऐमा एकान्त नियम नहीं है । पर अपूर्वकरण माग्ने । लिए पहले यथाप्रवृत्तिकरण करना अनिवार्य है। दृष्टि में ययाप्रवृत्तिकरण की अपूर्वकरण के पूर्वकरण के रूप में बहुत ही उपयोगिता है। किन्तु यह ध्यान रहे कि पूर्वकरण मे निविड रागद्वेप की गाठ टूटने से रागहेप का मर्वथा नाश नहीं हो जाता, रागद्वेष की जो पक्की गाठ पी, वह खुल जाती है, उमकी पकट ढीली हो जाती है और उमका मर्वथा नाग परने का मार्ग खुल जाता है। . अनिवृत्तिकरण-चरमकरण =अन्तरकरण-अपूर्व (करण) वीर्योत्नान के परिणाम गे प्राणी ग्रन्थिभेद करने के बाद अन्तमुहर्तकाल में अनिवृत्ति