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________________ परमात्मा की सेवा और सम्यग्दर्शन प्राप्त होने से पहले वह धर्ममार्गानुसारी सुनीति, उचित नियत्रण और उचित व्यवहारमार्ग पर चल कर गुणप्राप्ति मे धीरे धीरे प्रगति करता है और व्यवहारकुशल बनता है। जैनदर्शन मे सम्यक्त्व प्राप्त होने से पहले उक्त मार्गानुसारी व्यक्ति को तीन करण प्राप्त होने का विधान है। करण का अर्थ यहाँ एक विशेष परिणाम या अध्यवसाय है। वे तीन करण ये हैयथाप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण । ये तीनो करण सम्यक्त्वप्राप्ति मे कारणभूत हैं। __ययाप्रवृत्तिकरण मे प्राणी की पूर्वकाल मे जैसी प्रवृत्ति थी, वैसी ही बनी रहती है, उसमे जरा भी परिवर्तन नही होता । कई लोग इसे अध - प्रवृत्तिकरण भी कहते है। जिस प्रकार पहाडी नदी का पत्थर नदी मे वारवार इधर-उधर लुढकते-टकराते गोल, चमकदार व चिकना बन जाता है, इसी प्रकार जीव भी मसारसागर मे अनेक दुख सहते-सहते कोमल और शुद्ध परिणामी बन जाता है । उसका परिणाम इतना शुद्ध हो जाता है कि उसके वल पर उसके आयुष्यकर्म के सिवाय बाकी के ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मों की (मिला कर) उत्कृष्ट स्थिति १ घटते-घटते पल्योपम के अमख्यातवे , भाग न्यून (जरा-मी कम) एक कोटाकोटी सागरोपमकाल की रह जाती है। इसी परिणाम को शास्त्र मे यथाप्रवृत्तिकरण कहा है। यथाप्रवृत्तिकरण से जीव रागद्वेप की एक मजबूत, कर्करा, गूढ वाँस के समान दुर्भद्य दृढ ग्रन्थी (गाठ) तक आता है, इसी को ग्रन्थीदेश की प्राप्ति कहते हैं । यो तो यथाप्रवृत्तिकरण से अभव्यजीव भी इस ग्रन्थीदेश की प्राप्ति अनन्तवार कर सकते हैं, यानी कर्मो की बहुत बडी स्थिति घटा कर अन्त कोटाकोटी सागरोपमप्रमाण कर मकते हैं, परन्तु वे रागद्वेप की इस दुर्भेद्य निविड ग्रन्थी को तोड नहीं सकते । अत इस ग्रन्थी का भेदन किये विना ही प्राणी वापस पूर्वप्रवृत्ति मे १ कर्मो की उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार है-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय की उत्कृष्ट स्थिति ६० कोटाकोटी मागरोपम की है, मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति ७० कोटाकोटी सागरोपम की है, नाम-गोत्र कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति २० कोटाकोटी मागरोपम की है , आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति २२ मागरोपम की है। -prmirm anen - ।।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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