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________________ परमात्मा से पूर्णवीरता की प्रार्थना ५३३ का शुद्ध स्वरूप प्रकट करने की अभिलाषा) स्वयबद्धता-स्वयप्रज्ञारूप मति से स्वयबोध के अग=प्रभाव से सूक्ष्म (आत्मा मे रमण करने की सूक्ष्म) क्रिया, तथा स्थूल (आत्मा की पूर्ण तथा शुद्ध स्वरूप को प्रकट करने के हेतुरूप चारित्र, अहिंसा पंचमहावतादि या ज्ञानादि पचाचार-पालन की अवश्य आचरणीय) क्रिया के रंग (अभिलाषा) से परम उत्साह (उमग) पूर्वक पोगी (द्रव्य-भाव से साधु) बना है। भाष्य छद्मस्थवीर्य : सूक्ष्मस्थूलक्रिया का उत्साह इस गांथा मे वीर्य के क्रमिक विकास का लक्षण बताया गया है। सर्वप्रथम वीर्य क्या है ? उसका क्रमशः विकास कैसे होता है ? इस बात को भलीभांति समझ लेना चाहिए। यद्यपि पिछली गाथा मे आत्मिक-वीरता की ध्याख्या की गई थी। परन्तु आत्मिक वीरता मे भी वीर्य मुख्य वस्तु है । उसके विना वीर और वीरता सभव नहीं होती, क्योकि वीर्यवान् हो, वही वीर कहलाता है और जो वीर्य से परिपूर्ण हो, वह वीरता कहलाती है। १. रस, २ रक्त, ३ मास, ४. मेद (चर्बी) ५ हड्डी, ६ मगज और ७ वीर्य ये सप्त धातु हैं। ओजस् को कोई-कोई धातु कहते हैं, वह भी वीर्य के परिपाक के रूप मे है। इन सात धातुओ मे से वीर्य अन्तिम धातु है। आहार पचने लगता है, तब उसमे से रसभाग और मलभाग अलग-अलग हो जाते हैं। मलभाग मलद्वार द्वारा बाहर फेंक दिया जाता है, किन्तु रसभाग मे रस से सर्वप्रथम रक्त बनता है, फिर उसमे से माम, चर्वी और हड्डियां बनती हैं, अमुक हड्डियो मे मगज (दिमाग) भर जाता है, उसमे से वीर्य बन कर वीर्याशय मे चला जाता है। फिर वह शरीर मे फैल जाता है, उससे शरीर में एक प्रकार की चमक-तेजस्विता या लावण्य, स्फूर्ति, सौन्दर्य और उत्साह आदि प्रतीत होने लगते हैं, इसे ही 'मोजस्' कहते हैं । निरोगी (स्वस्थ) मानवशरीर मे ओजस् चमकता है। सामान्यजनता की समझ ऐसी है कि उपयुक्त ७ धातुओ मे से सातवी धातु, जो वीर्य है, उसी के कारण वीरता, पराक्रम और शौर्य प्रकट होता है, परन्तु यथार्थ वस्तुस्थिति ऐमी नहीं है। सचाई यह है कि शरीर का सब प्रकार का संचालक आत्मा शरीर मे व्याप्त रहता है, उसका एक गुण वीर्य है। इस वीर्यगुण के कारण ही शरीर मे धातुओ का क्रमिक निर्माण ऐमा होता है कि शरीर मे वह
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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