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________________ परमात्मा से पूर्णवीरता की प्रार्थना ५३१ समक्ष दास वन जाते हैं, वे युद्धवीर हो, चाहे दामवीर, मच्चे माने मे वीर नहीं है । वे आध्यात्मिक दृष्टि से कायर है, आत्मवलहीन हैं, क्लीब है। ____ अव प्रश्न यह उठना है कि श्रीमानन्दघनजी ने प्रभु से वीरता की ही माँग क्यो की ? और कोई चीज मांग लेते ? प्रभु तो औढरदानी हैं, उनसे धनसम्पत्ति, सन्तान, घर, स्त्री, वैभव, हथियार, यश, मुकद्दमे मे जीत आदि मे से किसी चीज की याचना क्यो नही की ? इसका उत्तर यह है कि दीर्घदर्शी, सयमी, और आत्मार्थी व्यक्ति इन शरीर से सम्बन्धित वस्तुओ की मांग नहीं करता, वह यह मोचता है कि पैसा, स्त्रीपुत्र, घर आदि चीजे तो इसी जन्म मे काम आती हैं, फिर वीतरागप्रभु से तो वही चीज मांगी जाती है, जो प्रकागन्तर से प्राप्त न हो सकती हो। अथवा जिस महानुभाव से जो चीज़ मांगना उचित न हो, उसे उनसे मांगना भी व्यर्थ है। इसी दृष्टि से श्रीआनन्दघनजी ने इस गाथा मे सूचित किया है- 'वीरपण ते माग रे। वीर प्रभो | आप महावीर हैं, आपने जिस तरीके से महावीरत्व प्राप्त किया है, वही महावीरत्व मैं आपसे चाहता हूँ। मै भौतिक वीरता या बाह्य शूरवीरता नही चाहता, जो एक जन्म तक ही सीमित हो, या जिससे आत्मिक शत्रुओ के सामने दुम दबा कर भाग जाऊँ; बल्कि ऐसी शूरवीरता चाहता है, जो जन्म-जन्मान्तर से मुझं धोखे मे डालने वाले, मेरे दिमाग मे भ्रान्ति पैदा करने वाले और मेरी अनन्तशक्ति को राग, द्वेप, मोह, काम, क्रोध आदि दुर्गुणो मे लगा कर छिन्नभिन्न करने वाले हैं, उनसे निपट सकू , उनसे जूझ सकू और उन्हे खदेड सकू। मैं आपसे वैसी वीरता इमलिए चाहता हूं कि अगर मुझमे वह आध्यात्मिक वीरता, विविध आत्मशक्ति-सम्पन्नता, या वीर्याचारपरायणता होगी तो मैं आत्म-विकास के लिए जो कुछ करना चाहता हूँ, स्वरूपरमणता मे अखण्ड टिके रहने के लिए जिस प्रकार का पुरुषार्थ करना चाहता हूं तथा सम्यग्दर्शनज्ञान-चारित्र की भरसक साधना करके एक दिन अनन्त-ज्ञान, अनन्तदर्शन अनन्त-अव्यावाधसूख और अनन्तवीर्य प्राप्त करना चाहता हूँ, वह कर सकूगा। इसीलिए मैं आपसे और किसी भी सासारिक वस्तु की याचना न करके सिर्फ आध्यात्मिकवीरता की याचना करता हूँ, इस वीरता के प्राप्त करने से क्या होगा ? इस शका के समाधानार्थ स्वय श्रोआनन्दधनजी कहते हैं-'मिथ्या मोह मोह-तिमिर-भय भाग्य , जीत नगारूं वाग्यु रे।' इसका भावार्थ यह है कि प्रभो । महावीर | जिस प्रकार आपके द्वारा महावीरता प्राप्त होते ही
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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