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________________ ५३० अध्यात्म-दर्शन उससे वीरता सिखाने की प्रार्थना करता है, परन्तु यहां जिनपे योगीश्री वीरता की याचना या प्रार्थना कर रहे है, वे तो वीतराग है, उनके न तो कोई शत्रु है, न उन्हें शस्त्र-अस्त्र से किसी से लडना है, न वे किसी प्रकार का युद्धकौशल दिखते हैं और न ही ये वातें (शस्त्रास्त्र-सचालन आदि) किसी को सिखाते हैं, उनका मार्ग ही इन सबको छोडने और छुडाने का है, वे तो हथियारो को छुडा कर निहत्था बनाते हैं, हिंसाजनक युद्ध, शस्त्रास्त्रसचालन, शत्रुता, मारकाट करने मे बहादुरी आदि सबका स्वय त्याग कर बैठे हैं और ठूमरो से त्याग कराते हैं, तब फिर ऐसे महात्यागियो और जगत् से सर्वथा उदासीन, निरपेक्ष वीतराग से वीरता की माग करना क्या उचित है, क्या युक्तिसगत है ? इसके उत्तर के लिए हमे वीरता की यथार्थ परिभाषा और इसके वास्तविक अधिकारी को समझना होगा। क्योकि वीरता की याचना उसे करना न्यायोचित है, जो सच्चे माने मे वीर हो, जिसने अपने जीवन मे पूर्णवीरता प्राप्त की हो, जो युद्धवीर, दानवीर और धर्मबीर से भी ऊपर उठ कर अध्यात्मवीर वन कर आत्मा पर लगे हुए राग-द्वे प-मोह आदि रिपुओ या कर्मशन ओ के साथ वीरतापूर्वक जूझ कर पूर्ण केवलदर्शन एव अन तवीर्य प्राप्त कर चुके हो, जो वीरता के मार्ग मे गया है, पूर्णवीरत्व की मजिल पर पहुंच चुका है, उमीसे ही वीरता की याचना करना उचित है। इस दृष्टि से देखा जाय तो भ० महावीर स्वय आदि से ले कर अन्त तक वीरता के आग्नेयपथ से गुजरे हैं उन्हे वीरता प्राप्त करने के कारण, साधन, वीरता के मार्ग मे आने वाली विघ्न-बाधाओ, उपसर्गों और परिपहो का परिपक्व अनुभव है, इसलिए उनसे इस प्रकार की वीरता की प्रार्थना करना कोई अनुचित नही है । और वास्तव मे देखा जाय तो ऐसे अध्यात्मवीरो से ही वीरता की तालीम ली जा सकती है। ____ जो व्यक्ति संग्राम में बडे-बडे सुभटो से साहसपूर्वक जूझते हैं, जो प्राणो की वाजी लगा कर युद्ध मे अपने को झौंक देते हैं, जिनके पास हजारो-लाखो योद्धाओ की की सेना है, प्रचुर शस्त्र-अस्त्र हैं, जिनका शरीरबल बहुत ही चढावढा है, जो इन्द्रिय-विपयो के गुलाम हो जाते हैं, काम और कामिनी के कटाक्ष के आगे पराजित हो जाते हैं, कषायो और मोह के सामने भीगी विल्ली बन जाते हैं, मन को वासना-नरगो के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, इच्छाओ के
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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