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________________ ५०८ अध्यात्म-दर्शन फिर सेवक का धर्म भी यही है कि स्वामी की इच्छा मे ही अपनी इच्छा को मिला देना । सेवक को स्वामी की इच्छा का सम्मान करना चाहिए । इमी से सेवक की प्रतिष्ठा बढ़ती है। स्वामी के अभिप्राय के अनुसार चलना ही मेवक का मतकर्तव्य है। मेरे स्वामी जव अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत और वीतरागभाव धारण कर चुके हैं, तब मुझे भी इनसे विरुद्ध नहीं जाना चाहिए। मुझे मच्चे माने मे इन्हे वररूप मे स्वीकार करना हो तो इनके भौतिक शरीर को नहीं, अपितु इनके वीतरागभाव- शुद्धात्मभाव का वरण करना चाहिए । आत्मा के साथ आत्मा का ऐक्य ही वास्तव मे लग्न है, विवाह है, पाणिग्रहण है और यही अब मेरे लिए सर्वोत्तम कार्य है। जब मैंने अपने आपको इन की सेविका रूप मे निश्चित कर लिया है, तब स्वामी द्वारा स्वीकृत वीतरागता का स्वीकार करना ही मेरे लिए इष्ट कर्तव्य है। इसके सिवाय अब मेरे लिए अन्य कोई मार्ग ही नहीं है। _ अब श्रीनेमिनाथ भगवान् को पति के रूप मे अपनाने के लिए राजीमती के मन-वचन-काया के (योग) शुद्धप्रणिधानपूर्वक, अथवा इच्छादि तीन योगो में श्रीनेमिनाथ प्रभु का सच्चे माने मे स्वामी के रूप मे आदरपूर्वक स्वीकार कर लिया है। अर्थात् जैसे नेमिनाथप्रभु ने विकरण-त्रियोग से माधुता एव मन-वचन-काया मे वीतरागता धारण की है, वैसे ही राजीमती ने भी त्रिकरण योग से या त्रियोग से माधुता एव वीतरागता का स्वीकार करके उन (नेमिनाथ प्रभु) की आराधना शुरू कर दी। राजीमती ने दृढ विश्वास कर लिया कि मेरे आराध्य (ध्येय) वीतरागदेव ही मेरे आत्मगुणो का धारण, पोषण करने एव आत्मा को ससारसागर से पार उतारने वाले है। मुझे भी इन्हीं गुणो को धारण करना चाहिए । अथवा ज्ञानदशा से प्रभु धारणकर्ता हैं, भक्तिदशा से पोषणकर्ता हैं तथा वैराग्यदशा से तारणकर्ता हैं। __ जैसे मोतियो का हार हृदय पर धारण करने पर आनन्द और शोभा देता है,वैसे ही राजीमती ने नेमिनाथ भर्ता (पति) को तीन योगो से हृदय में आदरपूर्वक धारण कर लिया। उसने हृदय मे निश्चय कर लिया कि स्वामी के हाथ से ही दीक्षा प्राप्त करने से मेरा योगावचक योग सफल हुआ, स्वामी की आज्ञानुमार दीक्षा (साधुता) का यथार्थ पालन करने से मेग क्रियावचकयोग मफल हुआ और स्वामी से पहले ही मोक्ष मे जाना सभव होने से मेरा फलावचक
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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