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________________ ४६८ अध्यात्म-दर्शन ___ आध्यात्मिक दृष्टि से सोचा जाय तो मोहप्रेरित चित्तवृत्ति की यह उडान है। नेमिनाथस्वामी ने सिर्फ उदय मे आए हुए कर्मों को खपाने के लिए ही राजीमती के साथ पिछले आठ भवो मे प्रीति जोड रखी थी। परन्तु इस भव मे जब वे कम नष्ट हो गए और प्रभु वीतराग वन गए, तब राजीमतीरूपी चित्तवृत्ति के साथ रागप्रेरित प्रीति कैसे कर सकते हैं ? यही कारण है कि वे मुक्तिस्त्री के साथ वीतरागप्रेरित प्रेम वाध कर उसे सादि-अनन्त भग की दृष्टि से निभाने को तैयार हुए हैं। वास्तव में रागन्ति प्रेमी या प्रेम निभाने वाले तो समार मे बहुत होते हैं, लेकिन वीतरागप्रेरित आत्मस्वभाव मे अखण्ड लगन को निभाने वाले नेमिनाथप्रभु सरीखे जगत् मे विरले ही होते हैं। ॥७॥ ____ अब जरा और कठोर बन कर राजीमती अपने प्रेम का व्यग्यवाण छोडती है- 'यदि आपको प्रीति करके इमी तरह मुझे छोड देना था, यदि आपके मन की गहराई मे इसी प्रकार का दगा था या विचार था कि यह विवाह मुझे नही करना है, तो मुझे आपको पहले से ही बता देना चाहिए था, ताकि मैं ऐमा जान कर आपके साथ प्रेमसम्बन्ध वाधती ही नही। न आपको कुछ शिकायत रहती, न मुझे आपसे कोई शिकायत होती। किन्तु आपने मेरे साथ धोखा ही किया--आप सुसज्जित विवाह-मण्डप के निकट तक बरात ले कर पधारे थे, इससे यह तो स्पष्ट प्रतीत होता था कि आप मेरे साथ विवाह करने पधारे हैं, किन्तु अचानक एक ही झटके मे आप विना कुछ कहे-सुने प्रेमसम्बन्ध को तोड कर चले गए, यह व्यवहार मे कन्यापक्ष के लिए कितना नुकसानदेह होता है ? उस कन्या की हालत कितनी नाजुक हो जाती है ? उस पर कितनी आफ्त उतर आती है ? इस पर जरा गौर करके विचार तो करिए ! इस प्रकार तोरण सक आया हुआ दूल्हा विना विवाह किये वापिस लौट जाय, उसमे कन्यापक्ष के प्रति आम जनता के दिलो मे व्यर्थ की कितनी ही शका-कुशकाएं पैदा हो जाती है कि शायद वह विषकन्या हो, या कन्या पक्ष के लोगो ने वरात का सम्मान न किया हो, दहेज पर्याप्त न मिलने की सम्भावना हो। और एक निर्दोप कन्या को इस प्रकार परित्यक्ता की सज्ञा "मिल जाने से शायद वह आत्महत्या तक भी कर बैठे, धैर्य खो कर पगली हो जाय, यह हानि क्या कम है ? आप मुझ-सी निर्दोप कन्या को दुर्दशा पर तो विचारिए । एक वार प्रेम जुड जाने के बाद उसे तोड़ डालने से दूसरा
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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