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________________ ध्येय के साथ ध्याता और ध्यान की एकता ४६७ कितनी आवरू बढेगी ? सचमुच आपकी आवरू चली जाएगी। इस पर आप ठडे दिल से विचार करिए। ___ आध्यात्मिक दृष्टि से तो यह बहिर्मुखी चित्तवृत्ति (अशुद्ध चेतना) का मोहक ताना है। आध्यात्मिक वीतरागपुरुष तो आत्मसमाधिस्थ होने के लिए बाल ब्रह्मचारी के रूप मे तीनो लोको मे व्याप्त हो जायगा। ॥६॥ फिर उलाहने भरे स्वर मे वह पुकार उठनी है- इस दुनिया मे सभी मनुष्य प्रेम करते है, इस प्रेम मे जुडने वाले तो सभी होते हैं, परन्तु एक बार प्रेम करने के बाद उसे जिन्दगीभर निभाने वाले विरले ही कोई होते हैं। ऐसे मनुष्यो की संख्या बहुत ही नगण्य है । जो प्रेमपात्र के साथ प्रेम सम्बन्ध जोड कर आजीवन उसे निभाते हैं। क्योकि प्रेम दोनो ओर से पलता है, एकतरफी प्रेम टिकता नहीं, उससे प्रमतरु शीघ्र ही सूख जाता है। अधिकाश लोग तो प्रेम का तार तोडते देर नही लगाते। आप भी उन अधिकाश सामान्यजनो की कोटि मे हैं। आपने जिस प्रेमतरु को आठ-आठ जन्मो तक मींचा, इस जन्म मे भी वाग्दान होने के बाद प्रेम की दिशा मे प्रयाण तो किया था, मगर अचानक ही सनक मे आ कर आपने प्रेमतरु को नष्टभ्रष्ट कर डाला। आपने प्रेम जैसी महत्वपूर्ण वस्तु को वालक का-या खेल समझ कर तोड डाला | अत जो मनुष्य प्रेम बांधने के बाद अकारण ही इस प्रकार प्रेम-भग कर डालता है, उसे क्या कहा जाय ? उसके साथ जबर्दस्ती तो की ही नही जा सकती, न इस काम मे जबर्दस्ती चल ही सकती है। क्योकि प्रेम आन्तरिक कारण है, वही प्रेमपात्रो को जोडना है। इसलिए आपके द्वारा किये गए प्रेमभग के खिलाफ न तो मुकद्दमा किया जा सकता है, न कोई जोर अजमाया जा मकता है। यह तो राजी-राजी का सौदा है। पर आपके खिलाफ कोई जोर नही चल सकता। हाँ, इतनी बात जरूर कहूंगी कि प्रेम बांध कर सहसा अकारण तोडने वाले की जगत् मे कितनी कीमत होती है ? इस पर जरूर विचार करें।, मेरी ओर से आपके प्रति कोई विरुद्ध प्रचार मानहानि करने का नही होगा, मेरे हृदय मे तो वही प्रेम आपके प्रति रहेगा। इसके बावजूद भी आप मेरे प्रेम को नही पहिचान कर उसे ठुकरा देंगे तो मेरा कोई बस नही चल सकता। आप स्वय समर्थ हैं, मैं तो केवल प्रार्थना के शब्दो मे ही निवेदन कर सकती हूं।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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