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अध्यात्म-दर्शन
तत्वज्ञान की दृष्टि से देखा जाय तो दुनियादारी का प्रेम मोहभित तथा संसारवृद्धि करने वाला होने से धतूरे के समान अवश्य हो सकता है, योगधारण करके मुक्ति के प्रति प्रेम धतूरा नही, कल्पवृक्षसम है, वहां किसी प्रकार का रागादि नहीं होता। आप सचमुच वीतराग परमात्मा है, और मुक्तिप्रेम ता रागादिरहित कल्पतरुवत् होता है, जिसके फल ज्ञानादि अनन्तचतुष्टयरूप हैं।
इसके अनन्तर फिर राजीमती सासारिक प्रेमिका (पत्नी) की तरह मानो नेमिनाथ के प्रति उसको मेविका के नाते कहने का अधिकार है, इस दृष्टि मे ताने म.रती है-'हे नेमिवु मार | आप मुझे छोड कर चले जायेंगे, इसमें मेग तो कुछ भी बिगडने वाला नही, क्योकि मैं तो आपके प्रति पूर्ण अनुत्ता हूं। आप ही मेरे प्रेम को ठकरा रह हैं। क्योकि आपने मेरे साथ पाणिग्रहण करने की स्वीकृति दे कर गभित प्रतिज्ञा भी कर ली, उसी कारण यादव लोगो की वगत साथ मे ले कर रथारूढ हो कर आप मेरे साथ विवाह करने के लिए (मुझे लेने के लिए) तोरण तक पधारे थे। लगभग तोरण के पास आ कर माप रथ को मांड कर वापिस लौट गए हैं, इसमे मेरा कोई दोष नही था, और न है । इसलिए मुझे किसी प्राार का लाछन नही लगेगा। लेकिन आप तो राजकूमार हैं, जब आप राजा. महाराजाओ की सभा मे बैठेंगे और लोग आपसे स्पष्टीकरण मागेगे कि 'आपने राजीमती को किस कारण छोड दी ? तब आप क्या जवाब देंगे? 'आपको उस समय शमिदा हो कर नीचा मुह करना पडेगा कि क्या राजकुमारी राजीमती कलाहीन थी ? उसके रूप लावण्य में कोई कमी थी " क्या कोई दोष या ऐब था। क्या उसके हृदय में आपके प्रति प्रेम नही था? जिसके कारण सुसज्जित विवाहमडप के पास मे ही वापिस लौट आए और उस कन्या का त्याग कर दिया? उस समय आपको निरुत्तर और सबके सामने लज्जित होना पडेगा । आपकी इज्जत क्या रहेगी उस समय? और जब आपको स्वय ही अपने प्रेम-विच्छेद की याद आएगी, तव आपको अपने इस लज्जाजनक कृत्य से अपने प्रति ग्लानि नहीं आएगी ? क्या अपने कृत्य के प्रति तिरस्कार नहीं पदा होगा? एक और दृष्टिकोण है इसमे कि 'आप जरा विचार तो कीजिए कि जब आप राजसभा मे बैठेंगे तो आप जैसो को पत्नीविहीन देख कर लोग मजाक उडाएंगे बिना पत्नी का व्यक्ति बाडा कहलाता है । वाडे व्यक्ति की न परिवार में कोई इज्जत होती है, न सभ्य समाज मे । अन मैं कहती हूं कि पत्तो से रहित आपकी राजसभा मे