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________________ अध्यात्म-वगन तीसग रहाय यह कि प्रनाना आगमो र भी जो बात मा पर. मात्मा तक पहुँचने का जो नम्बर मार्ग बनाया है, उनो अनुमार मान युग में पूरी तरह ने भाचरण लग्ना टेली गीर है। पौकिनगुपच कानीमा कोरे पापावलोपन में नहीं हो जाता, उगो सिए प्रभम पात्रतातित चारित्र को जान-जनम का उस पर चलना अनिवार्य, नीलिए कहा गयाउरा प्रभुपच पर कदम रगना- ना--अनिधागान - 27 माना अत्यन्त कठिन है। ___चरण धरण वह ठाय' क नरम्य यर मी तो मानो मेगाथिन प्रभमार्ग-नाग्यिमार्ग-२ मि ते नमरवानी है कि म दास के थियो नाक म्याग वा पोजन न नाचणार पालन) न करे, पाराकिर प्रयोजन न भी आगनमोनि, पारस गमा पद-प्रतिष्ठा की गालमा में निहार नामिना आगमरना दी , केवल आइत्पद (बीतगगता) प्राप्त करने के लिए नाग्नि-पालन TF 'ग दृष्टि मे वीतरागना के पथ पर नलना बडे-बडे नाधकों ने तिरायिन हो जाना है, क्योकि आनार्य हेमचन्द्र को भी कहना पडा---- दृष्टिगग इतना वनवान् और पापिष्ट है कि बड़े-घंटे माधको के लिए उनमो नष्ट करना कटिन होना है।' ७ कानाम्गेहनीय भी इतना प्रबल होता है कि वह नाधनः पी पवित्र दृष्टि पर मोह एव अजान का पर्दा डाल देता है, जिसने उनै परनाला यथार्थ पथ ही दृष्टिगोचर नही होना, इम पथ पर बनने को तो अवश हो कहाँ ? इसीलिए आगम मे पथ के वस्तुतत्व पर विचार कर लेने पर भी पूर्वोक्त कारणो से उस पर चरण (कदम) रखना कठिन हो जाता है या उनके म्वरूपरमणम्प चारित्र पर स्थिर रहने अथवा व्यवहार चाराि रप मे आचग्नि प्रभुपथ गी कठोरता का देख कर उनका आनरण करने की कोई गंजाइश नहीं। १ 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग'-जत्वाचं नूत्र ११२ २ 'न इहलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, न परलोगट्ठयाए आयारमहिद्विज्जा न कित्तिवन्नसिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, नन्नत्य आरतहि हेहि आयारमहिट्ठिज्जा।' -दशवै० ६/३६ ३ दृष्टिरागो हि पापीयान् दुरुच्छेद सतामपि-आचार्य हेमचन्द्र
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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