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अध्यात्म-दर्शन
घर पर पधारो, मेरे रहने के स्थान पर पधागे, क्योकि आप तो मेरी आशा के विश्रामस्थल हैं। है सज्जनपुरुष | मार रथ को वापिस मेरे घर की ओर मोडिा, मेरे मन के मनोरय को साथ ले कर बाप रय वापिस मोड कर घर पधारिए ।
भाप्य
घर पर पधारने और ग्य को मोडने की प्रार्थना अन हे प्रागवल्लम बामिन् । आप मेरे घर (पीहर) पधारें। आपतो मेरी तम म आशाओ के केन्द्रम्यान है आपको पा कर ही मेरे द्वारा सजोई हुई आगामओ के स्वप्न विश्राम पायेंगे, अन्यथा उन सब आशानी पर पानी फिर जागा । आशाओ के महल उजड़ जाएंगे। और फिर आप सज्जन हैं, इमलिए किमी की आशाओ (बेंबी हुई मनोकामनाओ) को ठुकरा कर आप नहीं जा सकते । सज्जन किसी को पहने अभाजन (वाग्दान) दे कर आशा बंधा कर फि उपे तोडते नहीं। इसलिए हे सज्जन | आप को रथ के वापिस मेरे घर की ओर मोडिए और मेरे घर की ओर मोडिए और मेरे मनोरथो को ध्यान में रख कर व पिस लौटिए । आपका रथ चला जा रहा है, साथ में मेरा मनोरथ भी चला जा रहा है । आपके साय ८ भवो के प्रेम के कारण अब जो सगाई. सम्बना हआ, उसके बाद मन मे जो-जो आशा के महल वावे ये वे सब टूट रहे है, आर रथ वापिस मोडेंगे तभी वे टिक सकेंगे। आपके रथ के जाने आने पर मेरे मनोरथो का जाना-आना निर्भर है क्योकि आप ही मेरे मन ने माने हुए विधाम है। भारतीय आयकन्या के लिए बारदान ने ह भावी वर पति हो जाता है, वहीं आजन्म पति रहता है। एक बार प्रियतम स्वीकार कर चुकने के बाद वह जीवनभर के लिए पति हो चुकता है। कु वारी कन्या की समस्त आशाओ का दारोमदार भावी पति पर है। वह जागृत अवस्था मे अनेक सपने सजोती हैं, उन सव स्वप्नो की माकारता पति पर अवलम्बित रहती है। इसीलिए राजीमती नेमिनाथस्वामी से आग्रहपूर्वक उक्त प्रार्थना कर रही है।
इस गाथा का अध्यात्मभित अर्य राजीमती को अध्यात्मिक दृष्टि मे बहिर्मुखी चित्तवृनि मान कर इसका अर्थ करते हैं तो यो होता है-“वह कहती है 'मेरे प्रियतम आत्मन् । मेरे यहाँ पधारो ! मैं तो तुम्हारी पुरानी सेविका हूं, मेरी आशा के तुम्ही तो विश्राम (आधार) हो । अगर तुम्हीं (स्थितप्रज्ञ आत्मा) मुझे ठुकरा दोगे, तो मेरा क्या