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________________ ४८० अध्यात्म-दर्शन घारणा-ध्यान करने से पूर्व योग के अप्टागोक्त धारणा व रनी पड़ती है। जो इन्द्रियजय के बाद और ध्यान से पहले ध्यान की पूर्वभूमिकास्प में होती है। ये धारणाएं कई प्रकार की होती हैं जैसे पायिवी, वारुणी आदि । अथवा अपने भावो मे १२ गुणो सहित अन्हिन्त की, या ८ गुणसहित सिद्ध की, ३६ गुणो सहित आचार्य की, २५ गुणो सहित उपाध्याय की अथवा २७ गुणों सहित मुनिवर की धारणा (भावना) करनी चाहिए। अयवा बीजाक्षर-धारणा एक शब्द है, इसके अनुसार कौन-सी मुद्रा धारण कर के कौन-से अक्षर का कैसे ध्यान किया जाय ? इसे वीजाक्षरधारणा कहते हैं । ध्येय पर चित्त को स्थापन करके उसमे एकाग्र करना पातजलयोग के अनुसार धारणा है, जो बाह्य मे सगुण (साकार) ईश्वर का ध्यान तथा आभ्यन्तर मे नासिका, जिह्वा आदि सात चक्रो की व्यवस्था वताई गई है। अक्षर-न्यात-अ, इ, उ, आदि अक्षरो की शास्त्रसम्मत विधि मे स्थापना करना और उन्हीं स्थापित अक्षरो पर चित्त को एकाग्र करना अक्षरन्यात कहलाता है । मन्त्रशास्त्र में इसकी अनेक विधियां बताई गई हैं। अथवा अक्षर और त्यास ये दो शब्द मान कर दोनो के अलग-अलग अर्य किये गए हैं। जैसे अक्षर का अर्थ है- अकारादि अक्षरावली वाले सूत्रसिद्धान्त या किसी. तत्त्वज्ञान पर मनन करना, मन को एकाग्र करना, न्यास का अर्थ है-गुरु की आज्ञानुसार कमल, हृदय आदि पर अक्षर की स्थापना करना, फिर द्रव्यअक्षर से निकल कर भाव अक्षर (आत्मा-परमात्मा, जो क्षर (विनाशी) नही है, उस पर मनन करना, साक्षात्कार करने हेतु मन को जोड़ना। अर्थ-अर्थ या भावार्थ का अवलम्बन लेना। विनियोग-दूसरों (योग्यपात्रो) को ध्यान के अर्थ (ज्ञान) का गुरुगम कराना, अथवा ध्यान मे लगाना । अयवा अर्थ-विनियोग दोनों मिल कर एक शब्द मान , कर अर्थ किया गया है-परम अर्थ यानी ध्यान का विषय पिण्डस्थ हो या पदस्थ हो, रूपस्थ हो या रूपातीत, उसका आत्मार्थ (आत्महित के लिए) ही - चित्तवृत्ति मे विनियोग करना। क्योकि सासारिक या फलाकांक्षाविषयक अर्थ को ले कर अनर्थ की सभावना है। इस प्रकार विधिवत् (६, ७ या ८ प्रकार से युक्त विधि से) ध्यान (चित्त
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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