SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीतराग परमात्मा के चरण-उपासक ४७६ भाष्य जिनवर या समयपुरुष का सालम्बनपदस्थध्यान जिनवर के चरण-उपासक बनने के लिए समयपुरुष (जैनदर्शनरूप) को ध्येय बना कर ६ या ७ आलम्बनो द्वारा ध्यान करके वीतरागत्व प्राप्त करने की प्रक्रिया इस गाथा मे श्रीमानन्दघनजी ने बताई है। यह गाथा मुख्यतया योगनिया स सम्बन्धित है। योग मे ध्यान की . प्रक्रिया सर्वोत्तम है । 'पदस्थ' ध्यान जिसे करना हो, उसके लिए आलम्वन लेना परम आवश्यक है। प्रत्येक साधक को पहले उसका अर्थ समझ लेना चाहिए । अत सक्षेप मे अर्थ नीचे दिया जाता है। सर्वप्रथम ध्यान, ध्येय और ध्याता तीनो की त्रिपुटी का योग्य होना चाहिए । अगर इस ध्यान के योग्य पात्र न हो तो, उसे पहले पात्र बनने का अभ्यास करना चाहिए। तदनन्तर यह चयन करना चाहिए कि मुझे कौन-सा ध्यान करना है ? ध्यान के ४ .प्रकार हैं-पिण्डस्य, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत । इन चारो मे यहाँ निर्दिष्ट ध्यान पिण्डस्थ है। इसलिए ध्याता साधक को मन मे निश्चित कर लेना चाहिए कि मुझे पिण्डस्थ ध्यान करना है, और उपर्युक्त ६ या ७ आलम्बन लेने हैं । तत्तश्चात् उसे ध्येय का भी चुनाव करना चाहिए । ध्येय वही चुनना चाहिए, जो ध्यान द्वारा प्राप्त होना सम्भव हो । यहाँ प्रसगवश जिनदेव के कल्पवृक्षसम पदरूप समयपुरुष को ध्येयरूप मे चुनना है ।, और ध्येय के साथ ही ध्याता को भी तदनुकूल ध्यान मुद्रा आदि मे बैठना आवश्यक है । वे, ६ या ७ अग इस प्रकार हैं - मुद्रा -ध्यान करते करते समय पद्मासन या सिद्धासन, से बैठ कर अपने स्यूलशरीर को शान्त व एकाग्र बनाने के लिए शरीर की विविध आकृतियो (पोज) मे रखना होता है, उसे ही मुद्रा (पोज) कहते है। जैसे शबावर्त, पद्मावर्त, आवर्त, नवपदवर्त हीवर्त, नन्दावर्त, ऊवर्त आदि जप करते समय की मुदाएँ हैं । इसी तरह हाथ, पैर, मुख, सिर आदि की मुद्राएँ भाष्य मे बताई गई है। बीज-प्रत्येक मत्र के कुछ मून वीज या बीजाक्षर होते हैं, उन्ही के आधार पर मत्र सिद्ध होता है, मत्र द्वारा जो साध्य करना होता है, वह बीजमत्र फे द्वारा होता है । जैसे ऊँ ह्री, थीं, क्ली, ब्लू ऐं आदि बीजमत्राक्षर हैं।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy