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________________ अध्यात्म-मन द्वारा आत्मपरिबोध हो आमा आँगा पर नयम की गाना TET पवित्रता जी आर गति कर उन नयनान को ना आना। व्यत्ाति के अनुसार आचार्य जिनभद्रगणि मामा ने नाम का जन किया है जिसके मान पधार्य गवना मेवा, जात्मा गाह आत्मा को अनुमानित, गिरित किया गया यर भाग गया गिन एव समन्तभद्र नी जान्न की यह पनारी निश्चित करने ? वीनगरआप्नपुरुपो हाल जाना-परमा गया हो जा चिनी अन्य वनो दाम 7घितहीन (अपदम्य) न फिग वानरे जा प्रत्यक्ष अनुमान प्रमाती (नर्क एवं प्रमाण) ने टिन नको ना, जापानिमामो व या निमित सार्वजनिक हितोपदेश हो आध्यात्म-नापना के विध जाने वाले पका--- विचारमरणियां का जो विरोध करना हो, वहीं नाचा मात्र है। आप्नयन्त्रन को आगम कहते है, लेकिन आवारं अभयदेवरि को अनुमान आप्नपुरा मला प्रतिपादन करने को लाहित नहीं होने, नोमान या पकने नोट का अग न हो, क्योंकि ऐना कन्नं ने उनकी जानना बोप आता है लन्या यथार्थ उपदेशक आप्त है, जिनको वचन म पूर्वापविरोधा समगनि-विनाति न हो, जिनने वचन प्रत्यक्षादि प्रमाणो ने टिन नती। अन अगल, मा-1 एव आप्न के पूर्वोत लक्षगो के अनुसार वर्तमान में पचनित पारिन नानो के जननार जन पन्मात्ममार्ग का निर्णय माने जाते है तो उनमें कौन-सी १. 'ज सोच्चा पडिवज्जति तव खतिमहिमय'-उत्तनध्ययन ६/८. २ मासिज्जए तेण हि वा नेयमायावतो सत्र-विशेगावश्यक, भाय शासु अनुगिप्टॉ, शास्यने नेयमात्मा । याऽनेनाऽस्मादस्मिन्निति वा । जाम्यम्---टीका ३ आप्तोपज्ञमनुल्लच्यमहटेनविरोधकम् । तत्त्वोपदेशहत् साव शास्त्र कापयघट्टनम् ।।-नकरण्डम श्रावकाचार ४. 'आप्तवचनमागम'-प्रमाणनयतत्त्वानोंक ५ नहि आप्त साक्षात्पारम्पयंण वा यन्न मोक्षाग तत्प्रतिपादयितुमत्तहते अनाप्तत्वप्रसगात् । -भगवतीनूत्रवृत्ति । ६. आप्न खलु माक्षात्कृतधर्मा तयादृष्टस्यार्थम्य निरजापयिषया प्रयुक्त । “उपदेष्टा न्यायदशन, वात्स्यायनभाय ।
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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